शरीर से आत्मा को अलग देखने का करना चाहिए अभ्यास: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ भक्तियोग क्षेत्रक्षेत्रज्ञ विभागयोग गुणत्रय विभागयोग अर्जुन ने प्रश्न किया- प्रभु! आपके दो रूप हैं। साकार एवं निराकार, सगुण और निर्गुण। कुछ लोग आपके सगुण साकार रूप से बहुत अधिक स्नेह करते हैं। आपके सांवले स्वरूप में भक्ति उपासना किया करते हैं। दूसरे वे जो निर्गुण निराकार रूप का ध्यना किया करते हैं उन दोनों में कौन श्रेष्ठ योगवित्तम है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, जो मेरे इस सगुण साकार रूप का स्मरण करते हैं। चिंतन, वंदन, भजन, पूजन करते हैं। श्रद्धा के साथ मेरी उपासना करते हैं, वे संसार के सबसे बड़े योगवित्तम हैं, योगी हैं। उनके लिए मैं सरलता से प्राप्त हो जाता हूं, जो प्राणी मुझको भजते हैं, कैसे भजते हैं? मुझमें अपने मन को लगाकर जो भजन करते हैं, मेरी पूजा करते हैं, मेरी वंदना करते हैं, मेरा चिंतन करते हैं, कथा सुनते हैं, लेकिन जो कुछ करते हैं- श्रद्धा भाव लेकर करते हैं, वे श्रेष्ठ योगी है और मुझे अत्यंत प्रिय है। योगी का अर्थ होता है जो भगवान से जुड़ा हुआ है।
निराकार उपासना में अत्यन्त कठिनाई से ध्यान पूर्वक साधक ईश्वर से जुड़ पाता है और वहां समस्या भी है, कि आराधना निराकार है इसलिये ध्यान भी किसका किया जाय? इसलिए वह कठिन मार्ग है। सगुण साकार उपासना में साधक भगवान के विग्रह का पूजन आराधन करने में स्वतः जुड़ जाता है। यह मार्ग अत्यंत सरल है। भगवान कहते हैं अर्जुन शरीर और आत्मा को अलग देखना है। जैसे दूध पानी मिला दिया जाय, हंस के सामने रख दिया जाय, वह दूध-दूध पियेगा, बूंद-2 पानी अलग करेगा। हंस में ही ये वैशिष्ठ है। शरीर से आत्मा को अलग देखने का अभ्यास करना चाहिए। (पानी से दूध, पत्थर से लोहा, पत्थर से चांदी, पत्थर से सोना या और भी खनिज) मृत्यु आई, आत्मा अलग हो गई, शरीर किस मुद्रा में पड़ी है? योग में उसे शवासन कहते हैं। सब आसन के बाद शवासन है, छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम, का पावन स्थल पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के अवसर पर गीता-ज्ञानयज्ञ के आठवें दिवस भक्तियोग की कथा का गान किया गया। कल की कथा में पुरुषोत्तमयोग का गान किया जायेगा।