ईश्वर का चिंतन है कल्याणकारी: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ पुरुषोत्तम योग दैवासुरसम्पद्विभाग योग श्रद्धात्रयविभाग योग वही वेद वेत्ता है जो संसार रूपी वृक्ष को जानता है। ये संसार वृक्ष ऊपर की ओर जड़ों वाला है। नीचे इसकी शाखायें हैं। सगुण साकार ब्रह्म ऊपर रहता है। वहीं से संसार बना है। जड़े ऊपर की ओर है, शाखाएं नीचे की ओर हो जाती है। उत्पन्न तो सब कुछ परमात्मा से ही हुआ है, लेकिन संसार के चिंतन से बचना है, ईश्वर का चिंतन ही कल्याणकारी है। छन्दांसि यस्यपर्णानि। वेद ही इसके पत्ते हैं। इसको जो जान लेता है, वही वेदों का ज्ञाता है। इस मृत्युलोक में चारों तरफ इसकी शाखाएं फैली हुई हैं। विषय रूपी प्रवाल इसके अंदर है, ये चारों तरफ से व्याप्त है और यही कर्म बन्धन का हेतु है। इसके रूप का पता नहीं लगा, इसका आदि और अंत भी नहीं है। ये अश्वत्थ है। इसकी जड़ों को काटना है। वृक्ष की जड़ें कट गयी तो वृक्ष खत्म हो जायेगा। वृक्ष की जड़ कैसे काटनी है। तो कह रहे हैं- असंगशस्त्रेण-असंग बहुत बड़ा शस्त्र है। कहीं आसक्त न होना ये बहुत बड़ा असंग है। दृढ़ असंग शस्त्र के द्वारा इसको काट दो, फिर उस पद को खोजो अर्थात् उस परमात्मा को खोजो। खोजो रे भाई खोजो। जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ। मैं वपुरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ। जो समुद्र में गोते लगाते हैं वो मोती पाते हैं। जो किनारे बैठे रहते हैं उनको तो सीप ही हाथ लगती है। बैठे रहोगे तो विषय रूपी सीप और अंदर गोते लगा लोगे तो परमात्मा रूपी मोती प्राप्त हो जायेगा। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्रीदिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के अंतर्गत श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के नवम् दिवस पुरुषोत्तमयोग, दैवासुरसंपद्विभागयोग एवं श्रद्धात्रयविभागयोग की कथा का गान किया गया। कल की कथा में मोक्षसन्न्यास योग की कथा का गान किया जायेगा।

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