भगवान् की कथा सुनने से पापों का होता है नाश: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान् श्रीराधाकृष्ण की वांग्मयी मूर्ति है। भागवत जी के दर्शन से भगवान् के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है। भागवत जी के पूजन, आरती, प्रणाम, श्रवण से भगवान् के पूजन, श्रवण का फल मिलता है। भागवत और भगवान् में रंच मात्र अंतर नहीं है।
श्रवण-भक्ति- श्रवण-भक्ति से पाप जलते हैं, मन का मैल धुलता है और प्रभु का प्रेम जाग्रत होता है।
कथा में श्रवण किए हुए को आचरण में उतारना चाहिए, तो उसका प्रत्यक्ष लाभ मिलता है। कथा सुनने से जीवन में परिवर्तन आना चाहिए, अगर नहीं आ रहा है, तो हमारे श्रवण में कुछ कमी है। कथा श्रवण में तीन बिंदु है। श्रवण, मनन और निदिद्धयासन। श्रवण का अर्थ होता है, एकाग्र चित्त से कथा सुनना। कथा में सुने हुए विषयों को मन से मनन करना, इसी को मनन कहते हैं और निदिद्ध्यासन का अर्थ होता है। उसको अपने आचरण में उतारना। अगर हम ऐसा करेंगे तो कथा श्रवण के बाद हमारे जीवन में अवश्य परिवर्तन मिलेगा।
भगवान् की कथा सुनने से पापों का नाश होता है। पुण्य की प्राप्ति होती है। दुर्वृत्ति की समाप्ति होती है। कथा श्रवण करने से जीवन में अद्भुत क्रांति आती है। जहां जीवन पतन की तरफ उन्मुख था। वही कल्याण पथ का पथिक बन जाता है। यदि कथा सुनने के बाद जीवन में नई चेतना न आये और नये जीवन की शुरुआत न हो तो कथा श्रवण में कुछ कमी रह गयी। जगत की व्यथा को दूर रखकर ही कथा में बैठना चाहिए। भगवान् की कथा जीवन की व्यथा को दूर करती है। भगवान् की कथा कल्पवृक्ष के समान है। श्रवण करने से भक्तों का मंगल होता है। भक्त और भगवान् की कथा ही कथा है, बाकी सब व्यथा और वृथा है। कार्तिक मास के पावन अवसर पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में शंभूगढ़ की पावन भूमि, बाबा रामदेव पीर के पावन स्थल पर श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ के प्रथम दिवस भागवत माहात्म्य की कथा का गान किया गया। कल की कथा में राजा परीक्षित की सभा में शुकदेव जी का आगमन, चतुश्लोकी भागवत और विदुर चरित्र की कथा का गान किया जागेगा।