नई दिल्ली। नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले दक्षिण अफ्रीका के आर्चबिशप रह चुके डेसमंड टूटू का रविवार को 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्हें दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इतना ही नहीं टूटू को देश का नैतिक कम्पास भी कहा जाता है। टूटू के निधन पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने दुख जताया है। राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने रविवार को टूटू के निधन की जानकारी देते हुए कहा कि आर्चबिशप एमेरिटस डेसमंड टूटू का निधन दक्षिण अफ्रीका की एक बहादूर पीढ़ी की समाप्ति है जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ संघर्ष कर हमें एक नया दक्षिण अफ्रीकी दिया। बता दें कि डेसमंड टूटू को भारत में भी गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। रंगभेद का विरोध, शिक्षा और समान अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी। 1984 में उन्हें नोबेल का शांति पुरस्कार मिला। दो वर्ष के बाद 1986 में वे केपटाउन के पहले आर्चबिशप बनाए गए। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की सरकार से बातचीत के बाद 1990 में नेल्सन मंडेला जेल से रिहा किए गए और रंगभेद के कानून को खत्म किया गया। 1994 में चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति मंडेला ने टूटू को रंगभेद के समय में मानवाधिकारों के हनन की जांच करने वाले आयोग का नेतृत्व सौंपा। वर्ष 2007 में भारत ने उन्हें गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा था। डेसमंड टूटू के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गहरा दुख जताया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि टूटू विश्व स्तर पर अनगिनत लोगों के लिए एक मार्गदर्शक थे। मानवीय गरिमा और समानता पर उनका जोर हमेशा याद किया जाएगा।