कथा जीवन में लाएगी परिवर्तन: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। द्वैत की प्रतीति जब तक है तब तक दुःख की प्रतीति है। द्वैत की प्रतीति नष्ट होते ही दुःख भी समाप्त हो जाता है और इस संसार रूप सर्प का डसना भी समाप्त हो जाता है। हमें अभिमान नहीं करना चाहिए। अभिमान अगर छूट नहीं जाता और करना ही हो तो सत्य का ही अभिमान करना चाहिए। मिथ्या पदार्थों का अभिमान करने से क्या फायदा, सत्य के अभिमान से मुक्ति होती है और मिथ्या अभिमान से बंधन होता है। सत्य का अभिमान क्या है, जैसे- रामायण में सुतीक्ष्ण महाराज भगवान श्रीराम से अरण्यकाण्ड में वरदान मांगते हैं। अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे।। जैसे वृंदावन के महानतम् रसिक संत हरिराम व्यास जी कहते हैं- हौं श्री राधे जू के अभिमान। ऐड़े रहत श्याम सुंदर से बोलत अटपटि बानि।। भगवान् प्रहलाद को कुछ मांगने की बात कहते हैं। बार-बार विनती करते हैं पर प्रहलाद टाल देना चाहता है। श्री प्रह्लाद जी कहते हैं प्रभु मैं सौदागर नहीं हूं। तो भगवान कहते हैं कि यह मेरी आज्ञा का उल्लंघन है। प्रह्लाद घबराये और कहा कि आप कुछ देना ही चाहते हैं तो यह दीजिए कि मेरी कामना ही नष्ट हो जाये, मेरी कोई कामना ही न रहे। जो उच्च कोटि का साधक होगा, भगवत् भक्त होगा उसके मुख से जब आप कथा सुनेंगे, वह कथा आपके जीवन में अवश्य परिवर्तन ले आयेगी। आपने कथा सुनी और आपके जीवन में परिवर्तन नहीं आया, तो कुछ नहीं सुना, कथा सुनने के बाद जीवन में परिवर्तन होना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन से साधू-संतों की शुभ-मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *