नई दिल्ली। भारत अपनी खपत के करीब 10 फ़ीसदी ऊर्जा का उत्पादन विंड और सोलर के माध्यम से कर रहा है। यह एक अच्छी तथा महत्वपूर्ण बात है। अमेरिका 12 फ़ीसदी, चीन जापान और ब्राजील 10 फ़ीसदी जबकि तुर्की 13 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन इन माध्यमों से कर रहे हैं। इसी प्रकार यूरोपीयन यूनियन 21 फीसदी, यूनाइटेड किंगडम 23 फीसदी पवन और सौर ऊर्जा की मदद से उत्पादन कर रहे हैं।
अपने देश की बात करें तो 2015 में ऊर्जा उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 77 फीसदी थी जो 2020 में घटकर 68 फीसदी रह गई। 2035 तक भारत में ऊर्जा की मांग 4.2% वार्षिक दर से बढ़ने की संभावना है जो पूरी दुनिया में सबसे तेज होगी। विश्व के उर्जा बाजार में 2016 में भारत की मांग 5% थी जो 2040 में 11 फ़ीसदी तक बढ़ जाने का अनुमान है।
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से नवीकरणीय यानी अक्षय ऊर्जा को जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों का विकल्प बनाने पर उच्च प्राथमिकता से काम हो रहा है। सूरज से भारत में औसतन पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। एक मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए तीन हेक्टेयर समतल भूमि का होना आवश्यक है। आज भारत की कुल उत्पादन क्षमता में 36 फ़ीसदी अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी है जो 6 सालों में करीब ढाई गुना बढ़ी है।
मोदी सरकार ने 2022 तक 175 गीगा वाट और 20 35 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। एक अनुमान के मुताबिक रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजना से 15 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है। इस सराहनीय काम का सीधा अर्थ धरती पर 20 करोड़ पेड़ लगाने के बराबर है। भारत में ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं। जलवायु परिवर्तन के संकट से निकलने के लिए भारत ने जो प्रतिबद्धता व्यक्त की है वह एक सराहनीय कदम है।
2016 में पवन ऊर्जा की प्रति यूनिट लागत 4.1 8 रुपए थी जो 2019 में 2 .40 रुपए हो गए। 2013 में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन 34 हजार मेगा वाट था जो आज करीब 9 हजार मेगा वाट हो गया है। पिछले 6 महीने में बिजली की कुल मांग में कमी आई है। यह रिपोर्ट 48 देशों के ऊर्जा संबंधी आंकड़ों पर आधारित है। कुल मिलाकर ऊर्जा उत्पादन में विंड और सोलर की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। स्वदेशी कंपनियों को आगे बढ़ाने वाले आर्थिक नीति पर जो मोदी सरकार कर रही है उसका एक बेहतरीन असर भी दिखाई देगा।