पुष्कर/राजस्थान। श्री नरसी जी ने गांव भर के आबालवृद्ध सभी नर-नारियों को सुंदर मूल्यवान वस्त्र आभूषण पहनाये, उससे सब लोग शोभामय हो रहे थे। श्री नरसी जी की उदारता एवं कीर्ति का यत्र-तत्र-सर्वत्र सभी लोग गानकर रहे थे। बड़ा भारी आश्चर्य तो यह हुआ कि-उस चिट्ठे में लिखी सोने- चांदी की दो सिलें भी आई जो समधी और समधन के लिए विशेष भेंट के रूप में प्रदान की गई। संयोगवश एक स्त्री का नाम उस सूची में लिखने से रह गया था। उसे पहनावा नहीं मिला। उसने दूसरे से लेना स्वीकार नहीं किया और कहा कि- जिसने सब स्त्री पुरुषों को वस्त्र आभूषण पहनाये हैं, मैं भी उसी के हाथ से लूंगी। श्री नरसी जी की पुत्री कुंवरि बाई ने अपने पिता से प्रार्थना की कि- इसे भी पहनावा दीजिये, जिससे कि मेरी लज्जा रह जाय। श्री नरसी जी ने प्रभु से प्रार्थना की तो भगवान फिर आये। वस्त्रादि देकर उसकी कामना पूर्ण किये। अपने पिता के प्रभाव को देखकर उनकी पुत्री अपने अंग में फूली नहीं समायी थी।
सत्संग के अमृतबिंदु- मन को रोककर परमात्मा में लगाने के अनेक साधन और युक्तियां हैं। किसी प्रकार से भी मन को विषयों से हटाकर परमात्मा में लगाने की चेष्टा करनी चाहिए। जैसे चंचल जल में रूप विकृत दिखाई पड़ता है उसी प्रकार चंचल चित्त में आत्मा का यथार्थ स्वरूप प्रतिबिंबित नहीं होता। परंतु जैसे स्थिर जल में प्रतिबिंब जैसा होता है वैसा ही दिखता है इसी प्रकार केवल स्थिर मन से ही आत्मा का यथार्थ स्वरूप स्पष्ट प्रत्यक्ष होता है। अतएव प्राणपण से मन को स्थिर करने का प्रयत्न करना चाहिए। अब तक जो इस मन को स्थिर कर सके हैं, वही उस श्यामसुंदर के नित्य प्रसन्न नवीन-नील-नीरज प्रफुल्ल मुखारविंद का दर्शन कर अपना जन्म और जीवन सफल कर सके हैं। जिसने एक बार भी उस अनूप शिरोमणि के दर्शन का संयोग प्राप्त कर लिया वही धन्य हो गया। उसके लिए उस सुख के सामने और सारे सुख फीके पड़ गये। उस लाभ के सामने और सारे लाभ नीचे हो गये। यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः। जिस लाभ को पा लेने पर, उससे अधिक और कोई लाभ नहीं है। यही योग साधना का चरम फल है अथवा यही परम योग है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि कल से दस दिवसीय श्री शिव महापुराण कथा ज्ञानयज्ञ का शुभारंभ होगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।