नई दिल्ली। कालेधन पर सरकार की ओर से अंकुश लगाने की लाख कोशिशों के बावजूद स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि में अप्रत्याशित वृद्धि गम्भीर चिन्ता का विषय है। स्विट्जरलैण्ड के केन्द्रीयबैंक की गुरुवार को जारी वार्षिक आंकड़े चौंकाने वाले हैं।आंकड़ों के अनुसार बीते साल 2021 में भारतीय कम्पनियों और लोगों ने स्विस बैंक में 50 फीसदी से ज्यादा धन जमा कराया जो बढ़कर 30,500 करोड़ रुपये हो गई है। यह पिछले 14 वर्षों में उच्चतम स्तर पर है।
इसके पूर्व साल 2020 में यह आंकड़ा 20,700 करोड़ रुपये था। लगातार दूसरे साल जमा में बढ़त बने रहना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।हालांकि इसमें प्रतिभूतियों और इसी तरह के अन्य साधनों के साथ जमा को भी शामिल किया गया है। कालेधन की समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं, बल्कि यह विश्व के अधिकतर विकसित और विकासशील देशों की समस्या है। स्विस बैंकों में विदेशी ग्राहकों के धन के मामले में टाप टेन देशों में ब्रिटेन शीर्ष पर है। इसके बाद दूसरे स्थान पर अमेरिका है जबकि भारत 44 वें स्थान पर है।
स्विस बैंक के नम्बर वाले खाते को सबसे सुरक्षित माना जाता है। स्विट्जरलैण्ड में लगभग चार सौ से अधिक बैंक कार्यरत हैं जिनके कर्मचारियों को खताधारकों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। यह बैंक पहले गोपनीयता का सख्ती से पालन करते थे लेकिन 2017 में विश्व समुदाय के दबाव में अब बदलाव आने लगा है। इसके तहत जिन देशों के साथ बैंकों का अनुबन्ध है उनके साथ वह सारी जानकारी साझा करते हैं।
साल 2018 से भारत के साथ सूचनाएं साझा हो रही हैं। लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि यह धन वापस कैसे लाया जाय और कालेधन पर अंकुश कैसे लगे। जो आंकड़े सामने दिख रहे हैं वह इस बात का प्रमाण है कि देश में कालाधन की कमाई ज्यादा हो रही है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए अशुभ संकेत है। इसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।