गोरखपुर। ट्रेनों के एसी कोच में सफर करने वाले कुछ यात्री जिस चादर को इस्तेमाल में लाते हैं, उसी पर थाली रखकर भोजन करते हैं। कुछ तो जूठा बर्तन भी पोंछ देते हैं। इन यात्रियों की गन्दी मानसिकता का खामियाजा रेल विभाग के साथ ही अन्य यात्रियों को भी उठाना पड़ रहा है।
चादर पर लगे तेल-मसाले के दाग लांड्री में धुलाई के बाद भी नहीं छूटते। रेलवे के अनुसार, अप्रैल-मई महीने में छह हजार ऐसी चादरें हैं, जो दाग-धब्बों से खराब हो गईं। कहा जा सकता हैं कि, चादरों में लगे ये दाग उन यात्रियों के व्यक्तित्व पर भी सवालिया निशान खड़ा करते हैं जो ऐसा करते हैं।
कोरोना संक्रमण का प्रभाव कम होने पर 15 अप्रैल से पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने ट्रेनों में बेडरोल देने का निर्णय लिया। मगर, कुछ यात्रियों की लापरवाही रेलवे पर भारी पड़ रही है। सबसे ज्यादा शिकायतें लंबी दूरी की ट्रेनों में है।
जूता पोंछने व फाड़ने के भी मामले:-
कई यात्री चादरों और तौलिए से जूता तक पोंछते हैं। पॉलिश के काले धब्बे भी जल्दी नहीं छूटते। ऐसे में इन्हें कंडम घोषित कर दिया जाता है। वहीं दो महीने में सौ से ज्यादा चादरें फटी मिली हैं।
एक चादर के इस्तेमाल की अवधि एक साल है। इसके बाद इसे बदल दिया जाता है। खराब हुई चादरें केवल दो महीने ही उपयोग की गई हैं। इसी तरह कंबल के इस्तेमाल की अवधि रेलवे ने चार साल निर्धारित की है।
बेडरोल को पैकेट में रखकर दिया जाता है। पैकेट पर स्वच्छता संबंधित अपील भी छपी होती है, जिसमें साफ तौर पर लिखा होता है कि चादरों में जूता, सूटकेस अथवा खाने पीने की चीजें न पोंछें, लेकिन लोग इस संदेश पर अमल नहीं करते हैं।