नई दिल्ली। अब राजा का जन्म किसी रानी के पेटसे नहीं बल्कि मतपेटी के पेट से पैदा होता है। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधान मंत्री बने, तब भी राजवंशों को आश्चर्य हुआ था। एक प्रश्न गूंजता रहता था। बैक ग्राऊंड क्या है। बैकग्राऊंड भारतीय है। इस पहेली को समझना शायद थोड़ा मुश्किल है।
आम भारतीय कहा करते थे, इस समय एक इंडिया है और एक भारत है। इंडिया यानी वह लोग जो अब भी अंग्रेजों की नकल को गौरव बता कर गौरवान्वित हो रहे हैं। भारत यानी जहां देश की मूल पहचान यानी सनातन पहचान सुरक्षित ही नहीं, बल्कि पल्लवित हो रही है। इसलिए अटल जी के प्रधानमंत्री बनने पर इंडिया के एक- दो प्रतिशत लोग हैरान और दुखी रहे हैं।
सिर धुन रहे थे, क्या जमाना आ गया है। सचमुच जमाना बदलना शुरू हो गया है। जब मां गंगा ने सोमनाथ के प्रदेश से नरेंद्र मोदी को वाराणसी बुला लिया और उन्हें प्रधान मंत्री बना दिया। इस बार तो यह प्रश्न और भी जोर से गूंजा, बैक ग्राऊंड क्या है। लेकिन उसके लिए इंडियावालों को खोज नहीं करनी पड़ी। मोदी ने स्वयं ही मां गंगा के किनारे हाथ में गंगाजल लेकर हुंकार भर दी, मैं रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था।
इंडिया वालों ने नाक-भौं सिकोड़ ली। क्या जमाना आ गया है। लेकिन इससे एक युग बीत गया और दूसरा नया युग शुरू हुआ। यह नया युग भारत का युग था। राजा सचमुच मतपेटी में से निकलना शुरू हुआ था। इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में मां गंगा ने वाराणसी में बाजी पलट दी। देश का एजेंडा इंडिया के हाथ से छीनकर भारत के हाथों में दे दिया।
अब एजेंडा भारत तय करता है, इंडिया नहीं। अब द्रौपदी मुर्मू भाजपा की ओर से भारत के राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी हैं। ओडीशा के सुदूरस्थ मयूरगंज जिला के पिछड़े क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली द्रौपदी मुर्मू, संभल समाज की मुर्मू झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं। संभल समाज कैसा है, इसके संकेत फणीश्वरनाथ रेणु के मैला आंचल में मिलते हैं।
कौन मुर्मू। इंडिया में फिर सवाल पूछने का सिलसिला शुरू हो गया है। लेकिन उत्तर भी आने शुरू हो गये हैं। अरे भाई ! देखा नहीं, जो राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी बनने को घोषणा के बाद कृतज्ञतावश सामने के शिव मंदिर में जाकर झाडू लगा रही थी और नंदी बैल के कान में कुछ कह भी रही थीं।
मुर्मू की यह कृतज्ञता महानगरों में बैठे चंद इंडिया वालों को समझ नहीं आएगी क्योंकि उनका दिल हिंदुस्तान की विरासत में नहीं, बल्कि आयातित पश्चिमी विरासत में धड़कता है। वह भावी राष्ट्रपति की इस भावना और कृत्य पर शायद नाक-भौं भी सिकोड़ेंगे लेकिन अब उससे कुछ असर नहीं पड़ता। अब एजेंडा भारत तय करता है, इंडिया नहीं। मुर्मू ही असली भारत की प्रतीक हैं। अब तो चर्चा यह शुरू हो गयी है कि भाई यह यशवंत सिन्हा कौन हैं। यह प्रश्न ही बताता है कि एजेंडा बदल गया है। युग बदल गया है।