फैशन। कोई त्योहार हो या शादी अगर अलग लुक चाहिए तो मिरर वर्क वाले ड्रेसेस को एहमियत दे सकती हैं। मिरर वर्क आउटफिट में एक चमक जोड़ देता है। आजकल मिरर वर्क को कई तरह के फैब्रिक के साथ जोड़ा जा रहा है। कपड़ों में लगने वाले मिरर कई आकार में आते हैं, जो कपड़े पर कढ़ाई के माध्यम से जोड़े जाते हैं।
इस टेकनिक को अपैरल डिजाइनिंग के नाम से जाना जाता है। इन दिनों मार्केट में इसकी बहुत डिमांड है। कई डिजाइनर ने इसे डेनिम और प्रिंडेट फैब्रिक के साथ भी लॉन्च किया है, जो ट्रेंड में है।
बुरी नजर से बचाएगी मिरर वर्क ड्रेस:-
भारत में मिरर वर्क की शुरुआत मुगल काल के दौरान हुई। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार शीशा बुरी नजर को बेअसर करने में सबसे अधिक कारगार है। इसलिए मुगल दौर के हस्तशिल्प कारिगरों ने सोचा कि अगर इसे कपड़ों में लगाया जाए तो पहनने वाले को काले टीके की जरूरत नहीं पड़ेगी, वो चाहे कितना भी सुंदर दिखे उसे बुरी नजर नहीं लगेगी।
मिरर वर्क भी एक तरह का हैंडिक्राफ्ट है, जिसे एक एक कर हाथ से लगाया जाता है। इस हैंडीक्राफट को सबसे ज्यादा राजस्थान, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों में तैयार किया जाता है। आज भी इन राज्यों में प्रिंट्स से लेकर मिरर वर्क, बुनाई, कढ़ाई जैसे काम सबसे ज्यादा किए जाते हैं।
आज इस क्राफ्ट को हर तरीके के फैब्रिक और डिजाइन्स के साथ मिक्स एंड मैच किया जा रहा है। इसका प्रयोग डेनिम जैकेट से लेकर जींस तक पर किया गया, जिसे विदेशियों द्वारा भी खूब पसंद किया गया।
इसे लहंगा, शरारा, स्कर्ट, कूर्ती पर कढ़ाई के साथ लगाया जाता है, जो दिखने में बेहद खूबसूरत लगते हैं। प्रिंटेड शिफॉन मटेरियल से लेकर जॉर्जेट की साड़ी के बॉर्डर तक इसे हर तरीके के मटेरियल के साथ अटैच किया गया।
इसके अलावा इसे गोटा-पट्टी और ब्लाउज के बॉर्डर और नेक डिजाइन पर लगाया जाता है। इससे सिर्फ महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि पुरुष के कुर्ते पर भी लगाया जाता है।