नई दिल्ली। प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध के साथ इसके विकल्प की भी व्यवस्था होनी चाहिए। विकल्प भी ऐसा हो जो आर्थिक रूपसे आम आदमी की पहुंच के अन्दर हो । देश में सिंगल यूज प्लास्टिक (एसयूपी) पर प्रतिबन्ध प्रदूषण और कचरा कम करने के साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने की दिशा में केन्द्र सरकार का सख्त और सार्थक कदम है।
सरकार का शुक्रवार से इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाये जाने के बाद राज्य सरकारों ने इनका प्रयोग रोकने, इनका उत्पादन, वितरण, निर्माण और बिक्री रोकने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इससे लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी पर सीधा असर तो जरूर पड़ेगा लेकिन दिनों- दिन बढ़ते प्रदूषण और कचरा कम करने में मदद मिलेगी।
सरकार की सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध की प्रतिबद्धता इसी से समझा जा सकता है कि प्रतिबन्ध तोड़ने वाले के विरुद्ध पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत दण्डात्मक काररवाई की जाएगी। इसके तहत जेल की सजा के साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। प्रतिबन्ध को कड़ाई से लागू करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कंट्रोल रूम स्थापित करने के साथ ही जांच टीमें गठित की गई हैं जो सिंगल यूज आइटम के निर्माण, वितरण, स्टाक और बिक्री पर नजर रखेंगे।
एसयूपी पर प्रतिबन्ध अच्छी बात है, इस पर प्रतिबन्ध लगना भी चाहिए, क्योंकि इससे मिट्टीकी उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है जो कृषि उत्पाद को प्रभावित करने वाली है। साथ ही पृथ्वी के जीवधारियों के जीवन के लिए बड़ा खतरा भी बनता जा रहा है लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि प्रतिबन्ध के बाद इसके विकल्प पर काम करना कितना कठिन और सरल होगा इस पर विचार करने की आवश्यकता है। इसके स्थान पर ऐसा विकल्प आना चाहिए जो सबके लिए आर्थिक रूप से वहन करने लायक हो। एसयूपी का ज्यादा असर पैकेजिंग उद्योग पर पड़ेगा।