मुंबई। देश की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र की भी बड़ी भूमिका होती है। यह अर्थव्यवस्था के लिए विकास का इंजन बना हुआ है लेकिन चिन्ता की बात यह है कि सेवा क्षेत्र की गतिविधियां चार माह के निचले स्तर पर पहुंच गई है। मुद्रास्फीति के दबाव के बीच बिक्री में नरमी के कारण जुलाई 2022 में सेवा क्षेत्र की कारोबारी गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
यह चार माह के निचले स्तर 55.5 अंक पर आ गया है। परचेजिंग मैनेजर्स इण्डेक्स (पीएमआई) का यह आंकड़ा इसलिए भी चिन्ता बढ़ाने वाला है, क्योंकि जून में पीएमआई 11 वर्षों के उच्चतम स्तर 59.2 अंक पर था। एसएण्डपी ग्लोबल की ताजा सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि मुद्रास्फीति के दबाव के बीच बिक्री में कमी आई है और सेवा क्षेत्र का तारतम्य बाधित हुआ है।
प्रतिस्पर्धा के दबाव और प्रतिकूल मौसम से मांग में कमी आई है, जो अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सेवा क्षेत्र का योगदान 50 प्रतिशत है लेकिन कोविड- 19 के प्रतिकूल प्रभाव से सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) जो वर्ष 2019- 20 में 55 प्रतिशत था
वह 2021- 22 में गिरकर 53 प्रतिशत पर आ गया है। यह चिन्ता का विषय है। सेवा क्षेत्र न केवल भारत के सकल घरेलू उत्पाद में प्रमुख क्षेत्र है, बल्कि इसने महत्वपूर्ण विदेशी निवेश भी आकर्षित किया है। साथ ही निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान करने के अतिरिक्त बड़े पैमाने पर रोजगार भी प्रदान किया है। सेवा क्षेत्र की कारोबारी गतिविधियों का दायरा बहुत बड़ा है।
इसमें कमी आने से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इसलिए सरकार को यह सोचना पड़ेगा कि सेवा क्षेत्र की गतिविधियां कैसे बढ़ाई जाय। मांग में कमी का कारण क्रयशक्ति का कमजोर होना है। महंगाई के चलते ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। इसलिए महंगाई पर अंकुश लगाने के साथ ही जीएसटी की दरों को भी व्यवहारिक बनाने की जरूरत है। जीएसटी की मौजूदा दरों के कारण आम उपभोक्ताओं को काफी आर्थिक दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं। ऐसी स्थिति में सेवा क्षेत्र के महत्व को देखते हुए उसे मजबूत बनाना अत्यन्त आवश्यक है।