हमारी जिंदगी में भी होते हैं चार कमरे: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि ध्यान द्वारा अन्तर्मन के खजाने खोलने की विधि श्रीशिवमहापुराण में एक दृष्टांत के माध्यम से ध्यान के लिए संकेत दिया गया है। एक व्यक्ति का चार कमरों का मकान है। जिसके एक कमरे में दुकान है, दूसरे में प्रोडक्शन है, तीसरे में रहता है और चौथा कमरा बंद है। माता-पिता का देहावसान हो गया, पुत्र आकर उस घर में रहने लगा। उसने देखा कि तीन कमरे खुले हैं और चौथे में मोटा ताला है, उसने यह मान लिया कि यह कबाड़खाना है, सारे घर का कचरा पिता ने इसमें बंद कर दिया होगा। वह सारी जिंदगी तीन कमरे में रहता हुआ, बहुत गरीबी से जीवन व्यतीत करता रहा, उसके जीवन का खराब समय समाप्त हो गया और उसके पिता का कोई पुराना परिचित आया, उसने वह कमरा खुलवाया। उसमें इतना सोना था कि यदि वह खोलकर देख लेता, तब उसे दुकान करने की आवश्यकता ही न पड़ती। लेकिन उसने कभी वह ताला खोला ही नहीं, यह सोच कर कि यह कबाड़खाना है। हमारी जिंदगी में भी चार कमरे हैं।

जागृत अवस्था दुकान है, स्वप्न अवस्था प्रोडक्शन है, उसमें नई- नई चीजें बनती रहती हैं। सुषुप्ति अवस्था वह तीसरा कमरा है जिसमें खा पीकर सो गये। चौथा कमरा समाधि अवस्था वाला, ध्यान अवस्था वाला है। वहां ताला लगा हुआ है, जिसे हम कभी खोलने की कोशिश नहीं करते। इसलिए हम अनादिकाल से भटक रहे हैं। रोटी-कपड़े के चक्कर में डोलते रहे, पैसा कमाया, खाया पिया और चले गये। यदि कहीं चौथे कमरे का दरवाजा खुल जाता, फिर और कुछ करने की जरूरत ही न रह जाती। उस चौथे कमरे के खुलने के विविध उपाय हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी यही कहा, सनकादिकों ने भी यही कहा, भगवान शंकर ने भी कहा- संक्षिप्त रूप यही है यदि चौथा कमरा खोलना हो, तब एकांतवास की इच्छा होनी चाहिए। कुछ समय अकेले रहने की आदत बनाओ। एकान्त में मौन अपने आप ही हो जायेगा। भोजन कम खाओ, जिससे शरीर चलता रहे। ज्यादा संग्रह-परिग्रह नहीं रखना। सिर्फ गुजारे योग्य सामान हो। उसके बाद इंद्रियों को विषयों से हटाना, मन में गलत चिन्तन न होने पये, एकांत में बैठना और मन में बार-बार आने वाले संकल्पों का त्याग करना और यह समझकर अंदर प्रवेश करना कि हमें वह ताला खोलना है, जहां रत्न भरे पड़े हैं। सबका साथ जब हम छोड़ देंगे और अंदर चलते जाएंगे, फिर हमें वह कुंजी मिल जायेगी, जिससे ताला खुल जायेगा और तब आत्मानंद स्वयं ही प्रगट हो जाता है। जैसे मिट्टी अधिक खोदी जाये, परत-दर-परत निकालते रहो, एक जगह ऐसी आ जाती है, जहां पानी अपने आप निकलना शुरू हो जाता है। मिट्टी की परतों से पानी ढका हुआ है। जिसने मिट्टी और पत्थर की परतें निकाल ली, उसके लिए पानी सुलभ हो जाता है। जो मिट्टी और पत्थर की परतें नहीं निकाल सका, वह नीचे पानी होते हुए भी प्यासा तड़पता रहता है। जिसने बोर करा-कर मिट्टी की परतें हटा दी, उसके लिये पानी की कमी नहीं रहती। जितना जरूरत पड़े निकाल लो। यही योग और ध्यान है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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