नई दिल्ली। सरकारी या निजी बैंक अपनी ऋण राशि की वसूली के लिए ग्राहकों से जोर-जबरदस्ती करने के साथ ही अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न भी करते हैं। यह एक प्रकार से अमानवीय कृत्य है और इससे मानवाधिकार का भी उल्लंघन होता है। बैंक वसूली एजेण्ट नियुक्त करते हैं, जिनका व्यवहार अत्यन्त ही कठोर होता है।
इस सम्बन्ध में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने राहतकारी आदेश जारी किया है, जो स्वागत योग्य है। इससे बैंकों की ओर से होने वाली उत्पीड़न की कार्रवाई में कमी आएगी। आरबीआई ने ग्राहकों को भरोसा दिया है कि अब बैंक किसी विपरीत परिस्थिति में कर्जदारों से जबरदस्ती वसूली नहीं कर सकते हैं।
आरबीआई ने सभी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को इस आशय का परिपत्र भी जारी कर दिया है और उनको सख्त हिदायत दी गई है कि बैंकों का यह दायित्व बनता है कि वह कर्ज लेने वाले ग्राहकों को धमकाने, प्रताड़ित करने, निजी डाटा के दुरुपयोग करने की घटनाओं को रोकें। कर्ज लेने वालों के रिश्तेदारों या परिजनों को भी तंग करने से बाज आए।
आपत्तिजनक सन्देश भेजने और सोशल मीडिया पर बदनामी करने की घटनाओं को रोका जाय। विगत कुछ महीनों में रिकवरी एजेण्टों की मनमानी और जोर-जबरदस्ती की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए आरबीआई ने यह सख्त कदम उठाया है। आदेश में यह भी कहा गया है कि नियमों के अनुसार प्रात: आठ बजे से पहले और शाम सात बजे के बाद ग्राहकों को वसूली के बारे में फोन कदापि नहीं किए जाय।
रिजर्व बैंक का यह कहना भी राहतकारी है कि यदि वसूली एजेण्ट आपत्ति जनक मौखिक या शारीरिक कृत्य करते हैं तो रिजर्व बैंक इसे गम्भीरता से लेगा। वस्तुत: रिजर्व बैंक ने जो आदेश जारी किया है वह ग्राहकों के हित में है। जोर-जबरदस्ती करने वाले बैंकों के खिलाफ सख्त काररवाई होनी चाहिए लेकिन इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि कर्जदाता सही समय पर अपनी कर्ज राशि का भुगतान कर दें। ऐसा होने पर बैंकों को भी राहत मिलेगी और उनका कारोबार भी बढ़ेगा।