अध्यात्म। मानव जब काम-वासना, लोभ, लालच, मोह, माया में फंस जाता है तो उसके जीवन में भटकाव की स्थिति उत्पन्न होती है। यह जीवन के लिए अति कष्टदायी होती है। भटकाव की स्थिति भक्ति को नष्ट करती है। प्रत्येक प्राणी ईश्वर का अंश है, ईश्वर से बिछुड़कर भटकाव की स्थिति में वह ज्यादा अशांत, दुखी है। संसार का हर व्यक्ति देवता है, परन्तु वह पथ से भटक गया है।
मन, इंद्रियों की गुलामी ने उसे लक्ष्य से भटका दिया है। इस स्थिति में देवत्व की शक्ति क्षीण हो जाती है और व्यक्ति की इंद्रियां सशक्त नहीं रह पाती है। इंद्रियों की दुर्बलता ही मनुष्य के जीवन को पतन कर देती है। मन अति चंचल है। यह कभी भी केन्द्रित नहीं रहती। इसकी अस्थिरता को स्थिरता में परिणत करना कठिन कर्म है।
लेकिन बार-बार प्रयास करने से इस पर नियंत्रण पाना सम्भव भी हो जाता है। लेकिन इसके लिए काफी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। मन की स्थिरता की स्थिति काफी प्रचंड एवं शक्तिशाली है। यह जीवन की गौरव-गरिमा एवं उत्थान का सपना साकार करने में सक्षम सिद्ध होती है। मन की अस्थिर स्थिति मनुष्य को जहां भोगी एवं रोगी बनाती हैं, वहीं इसके विपरीत मन की स्थिरता मनुष्य को योगी बनाने में सक्षम सिद्ध होती है।
भोगी जीवन भव सागर पार करने में बाधक है और योगी जीवन जीकर भवसागर से पार करने में सफल हो जाता है। इन्द्रियों की लोलुपता क्षणिक सुख के लिए होती है, लेकिन आध्यात्मिक शक्ति नष्ट होती है। दीर्घायु जीवन की आशा इस स्थिति में नहीं की जा सकती है। व्यक्ति किसी भी क्षण खंडित हो सकता है।
उसकी निश्चितता पर प्रश्नचिह्न लग जाती है। अशांति, अतृप्ति का आन्तिरिक अहसास एवं चाहत मन को व्यग्र एवं कुंठित कर देती है। जीवन व्यक्ति का निराधार प्रतीत होता है। इस स्थिति से उबरने के लिए आध्यात्मिक पथ ही व्यक्ति के जीवन में अत्यंत सहायक सिद्ध होता है। ईश्वर भक्ति ही जीवन को नूतन आयाम देने में सार्थक सिद्ध होती है।
भक्ति का मार्ग सत्य का मार्ग है। सत्य मार्ग पर चलना ज्ञान है। अज्ञानी असत्य मार्ग का चयन करते हैं और जीवन की गरिमा को कलंकित करते हैं। भगवद्भक्ति का सुख स्थायी, आनंददायी, मोक्षदायी है। भक्ति की शक्ति में खोट नहीं है। तन-मन में बल की प्राप्ति होती है। मन शांत रहता है।
शरीर स्वस्थ, निपुण बना रहता है। मन को नियंत्रित करके योगी ऋद्धि- सिद्धि का स्वामी बन जाते हैं। अनियंत्रित मन मनुष्य को भिखारी बना देता है। अतः मन का दास न बनकर स्वामी बनने में ही जीवन सार्थकता है। जड़ता की स्थिति भटकाव है, चेतना के जागृत होते ही भटकाव दूर होता है और जीवनपथ में भक्ति का प्रकाश प्रखर होता है।