भारत अंतरिक्ष अर्थव्‍यवस्‍था में बढ़ाएगा 8% हिस्‍सेदारी

नई दिल्‍ली। भारत ने अब तक अंतरिक्ष क्षेत्र में जो काम किए, उनके बल पर अंतरिक्ष की वैश्विक अर्थव्यवस्था में दो प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। अब लक्ष्य है ये हिस्सेदारी चार गुना बढ़ा कर आठ प्रतिशत तक ले जाने की। इस लक्ष्‍य को हासिल करने में प्राइवेट सेक्टर को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की मदद से आगे बढ़ाया जाएगा।

यह दावा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन कुमार गोयनका ने किया है। अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में उपग्रह व उपकरणों का प्रक्षेपण, तकनीकी सहयोग, अंतरिक्ष पर्यटन आदि शामिल हैं।

गोयनका ने बताया, अंतरिक्ष में भारत के निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन और मदद, नई विज्ञान नीति का एक अहम लक्ष्य है। इसरो की भूमिका नई तकनीकें विकसित करने, बुनियादी ढांचा व ऐसा वातावरण बनाने में रहेगी जो क्षेत्र के व्यावसायिक पहलू को आगे बढ़ा सके। वह जल्द ही श्रीहरिकोटा में तीसरा प्रक्षेपण स्थल और तूतीकोरिन में स्पेसपोर्ट भी विकसित करेगा।

भारत बनेगा उपग्रह निर्माण हब:-
भारत का लक्ष्य विश्व का उपग्रह निर्माण व प्रक्षेपण केंद्र बनना है। अमेरिका में नासा से निजी क्षेत्र के विकास में एक दशक लगा। आज जहां अमेरिका है, वहां भारत को पहुंचने में 10 से 15 साल लगेंगे। निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन से यह संभव होगा। पवन कुमार गोयनका, अध्यक्ष, इन-स्पेस

अंतरिक्ष को निजी क्षेत्र के लिए खोलने के बाद सरकारी कंपनी न्यू स्पेस इंडिया लि. (एनएसआईएल) ने 22 जून को जीसैट-24
प्रक्षेपित किया। यह एनएसआईएल का पहला व्यावसायिक प्रक्षेपण था। यह उपग्रह उपग्रह आधारित प्रसारण के लिए 15 साल की लीज पर टाटा प्ले के लिए काम करेगा।

30 जून को ही पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के जरिये सिंगापुर की कंपनियों के लिए तीन उपग्रह भेजे गए। दो भारतीय स्टार्टअप ध्रुव स्पेस और दिगांतर के लिए भी उपकरण इसी प्रक्षेपण में भेजे गए। यह एनएसआईएल का दूसरा व्यावसायिक प्रक्षेपण था।

गोयनका ने कहा, भारत में अंतरिक्ष के लिए काम करने की भूख है। हमारे यहां इस क्षेत्र के 100 स्टार्टअप काम कर रहे हैं। इनमें दो-तिहाई तो पिछले दो साल में ही स्थापित हुए हैं। इन्हें तकनीकी सहयोग और इसरो की मदद की जरूरत है।

करोड़ में भारत के लिए 5 रॉकेट बनाएंगे एचएएल-एलएंडटी:-

अंतरिक्ष क्षेत्र में व्यावसायिक कामों के लिए बनी सरकारी कंपनी न्यू स्पेस इंडिया लि. (एनएसआईएल) के लिए पहली बार एचएएल व एलएंडटी मिलकर 860 करोड़ रुपये में पांच रॉकेट बनाएंगे। यह रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) होंगे, जिन्हें इसरो का वर्क-हॉर्स कहा जाता है। इन्हीं रॉकेटों ने अब तक 48 भारतीय और 209 विदेशी उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचाए हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *