स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह राहतकारी कदम…

नई दिल्ली। जीवनरक्षक दवाओं को सरकारी मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाकर केन्द्र सरकार ने गरीब और मध्यम वर्ग को भीषण महंगाई के दौर में राहत पहुंचाने का काम किया है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में संशोधन कर 34 नई दवाओं को जोड़ा है। इसमें ज्यादातर उन दवाइयों को शामिल किया गया हैजो लम्बे समय तक चलती हैं।

डायबिटीजबीपी और कैंसर जैसे रोगों की दवाओं का मूल्य नियंत्रण होने से यह दवाएं सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगी। ऐसे में कम्पनियां चाहकर भी इन जरूरी दवाओं का दाम नहीं बढ़ा पाएंगी। महंगी दवाओं की कीमत कम होताकि चिकित्सा खर्च कम आएइसे ध्यान में रखकर देशभर में प्रधानमंत्री जनऔषधि केन्द्र खोले तो गये लेकिन आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता के कारण सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी सस्ती जेनरिक दवा आम लोगों की पहुंच से दूर है।

तमाम केन्द्रों पर जहां जरूरी दवाएं उपलब्ध नहीं होती हैंवहीं चिकित्सक भी फार्मा कम्पनियों के बड़े-बड़े कमीशन के चक्कर में मरीजों का शोषण करते हैं। मरीजों को किफायती दाम पर दवा सर्वसुलभ हो इसके लिए सरकार को निगरानी नियामक तंत्र विकसित करना होगा। देश भर में लगभग साढ़े आठ हजार जन- औषधि केन्द्र हैंजो कि 140 करोड़ की आबादी के सापेक्ष बहुत कम है। सरकार को इसके लिए कई मोरचे पर काम करना होगा।

सभी प्रकार की जेनरिक दवाओं की उपलब्धता के साथ सरकारी अस्पतालों में इसके प्रयोग को अनिवार्य किया जाना जरूरी है। इसके साथ इन केन्द्रों का विस्तार कस्बों और गांवों तक होना चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके और वह बड़ी-बड़ी कम्पनियों की महंगाई दवाओं से उनको मुक्ति मिल सके। चिकित्सक जेनरिक दवा ही लिखेंइसके लिए कानूनी प्रावधान होना चाहिए तभी प्रधानमंत्री का सबको सस्ती दवा का सपना साकार हो सकेगा। सरकार को इसके लिए व्यवहारिक रणनीति बनानी होगी जिससे लोगोंको कम्पनियों की महंगाई दवाओं से मुक्ति मिले और स्वस्थ भारत का संकल्प पूर्ण हो।

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