मन को प्रभु में पिरोकर रखना ही प्रभु सेवा: दिव्‍य मोरारी बापू    

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि प्रभु का एक नाम है अच्युत-श्रीविष्णुसहस्त्रनाम में वर्णित श्रीकृष्ण के अनेकों नामों में से एक नाम ‘अच्युत’ है. अच्युत का अर्थ है- ऐसा सर्वात्मा जिसका अपने स्थान या स्वरूप से कभी पतन नहीं होता. जिसको काम स्पर्श करता है वही च्युत होता है और जिसको काम वासना स्पर्श नहीं कर सकती, वही अच्युत अविचल रहता है.

काम वासना के स्पर्श से लुब्ध होने वाला मानव ही स्वयं के स्थान एवं स्वरूप से भ्रष्ट होता है. जो काम के अधीन होता है उसी को काल के अधीन होना पड़ता है और उसी को वृद्धावस्था का कौर बनना पड़ता है. किन्तु जो काम के अधीन होता ही नहीं, उसे वृद्धावस्था पीड़ित नहीं कर सकती और स्वयं काल उसका तावेदार बनकर रहता है.

सूर्य को यदि अन्धकार छू सकता हो तो भी श्रीकृष्ण को काल स्पर्श नही कर सकता है. इसका कारण यह है कि श्री कृष्ण महायोगी हैं, और अच्युत हैं. मन को प्रभु में पिरोकर रखना ही प्रभु सेवा और सुमिरण है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 

		

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