Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि स्नेह, भक्ति, प्रीति और प्रेम-स्नेह-बड़ा छोटे पर जो भाव रखता है, उसे स्नेह कहते हैं. जैसे मां पुत्र या पुत्री पर करती है उसे स्नेह या वात्सल्य कहते हैं. पिता अपने बच्चों पर स्नेह करता है. मालिक अपने नौकर पर स्नेह करता है. गुरु अपने शिष्य पर स्नेह करता है.
भक्ति- अपने से जो बड़ा होता है उसके प्रति भाव का जो उर्ध्वगमन है उसको भक्ति कहते हैं. राष्ट्र हम सबसे बड़ा है इसलिये हम कहते हैं राष्ट्रभक्ति. पिता हमसे बड़े हैं इसलिए हम कहते हैं पितृ भक्ति. माता हमसे बड़ी है इसलिये हम कहते हैं मातृभक्ति. गुरु हमसे बड़े हैं इसलिये कहते हैं गुरुभक्ति. भक्ति भाव का उर्ध्वीकरण है.
प्रीति-प्रीति समान के सिवाय हो नहीं सकती वहां कोई बड़ा या छोटा भेद प्रीति में नहीं बन सकता. प्रीति समान के साथ ही होती है. प्रेम रामहि केवल प्रेम पियारा, प्रेम से प्रकट होहि मैं जाना. राम प्रेम बिनु सोह न ज्ञानी, तो प्रेम केवल भगवान से होता है और भगवान हमसे बड़े हैं उसे भक्ति का भी नाम देते हैं. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).