Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि गणपति से सीख- हमारे गणतंत्र में राष्ट्रपति हैं। राष्ट्रीय पक्षी भी है, पशु भी है। राष्ट्रीय चिन्ह भी है, ध्वज भी है, गीत भी है। लेकिन राष्ट्रदेव नहीं है। गणतंत्र में यदि राष्ट्रदेव बनाने के योग्य कोई देव हैं तो वह है ‘ गणपति ‘।
गणपति को राष्ट्रदेव इसलिये बनायें क्योंकि राष्ट्र का नेता कैसा होना चाहिये वह गणपति सिखाते हैं।
‘ ‘ गाणानाम् पतिः गणपति ‘ ‘
उसका नाक बड़ा होना चाहिये, विशाल प्रतिष्ठा वाला होना चाहिये। उसके बड़े कान होने चाहिये, यानि सबकी सुने। सबसे छोटे व्यक्ति की भी बात सुनने को तैयार होना चाहिये। उसका छोटी आंख यानि पैनी दृष्टि होनी चाहिये। उसका पेट बड़ा होता है, लेकिन भोजन खाने के अर्थ में नहीं, सब रहस्य उसके अंदर भरा पड़ा हो, उसका हृदय विशाल होना चाहिये और यह सब होते हुए भी वह मूषक पर भी बैठे तो मूषक दबना नहीं चाहिये।
मूषक गणपति का वाहन है। मूषक अर्थात् जनता। इनका बोझ तो अंत में जनता ही सहन करती है। लेकिन इतना आयकर का बोझ नहीं होना चाहिये कि जनता ही कुचलकर मर जाये।
गणतंत्र में गणपति राष्ट्र देव हों। एक आदर्श रूप में हों गणपति।
माता-पिता मात-पिता की सेवा करना, उन पर कोई यहसान नहीं। मात-पिता के चरणों से बढ़कर, दूजा कोई धाम नहीं।।
चरणों को छू लेने भर से,
चार धाम तीरथ हो जाये।
दुःख सहना मात-पिता की खातिर,
फर्ज है, कोई एहसान नहीं।।
कर्ज है इनका तेरे सर पर,
भिक्षा या कोई दान नहीं। मात-पिता जायदाद हैं ऐसी जिसका कोई दाम नहीं।। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।