Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सेवा तीन प्रकार की होती है वित्तजा, तनुजा और मानसी। वित्त अर्थात् धन। धन को प्रभु कार्य में लगाना वित्तजा सेवा है। तन से ठाकुर की सेवा करना तनुजा सेवा और मन को प्रभु में लगाये रखना मानसी सेवा है। वैष्णव के लिये वित्तजा और तनुजा सेवा साधन है और मानसी सेवा साध्य है।
संसार के मेले में ईश्वर जिनकी अंगुली थामेंगे वह कभी भटक नहीं सकता। सवाल यह है कि प्रभु हमारा हाथ पकड़े। ऐसी स्थिति यत्नसाध्य नहीं है कृपा साध्य ही है।
जन्म लेने वाली प्रत्येक वस्तु विकास करती है, पर यह विकास ही उस वस्तु को अपने आप विनाश की ओर ले जाता है, जैसे बचपन-युवानी-बुढ़ापा आदि।
काल का एक अर्थ है समय, दूसरा मृत्यु अथवा मृत्यु के देवता धर्मराज। समय कभी किसी चीज को एक रूप में नहीं रहने देता, सतत परिवर्तन ही संसार में एक स्थायी प्रक्रिया है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।