Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि प्रभाते करदर्शनम्- ‘ प्रभाते करदर्शनम् ‘ के पीछे अपनी संस्कृति की कितनी भव्य भावना समाई है. भारतीय संस्कृति कहती है: हे मानव! नित्य सवेरे ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ध्यान चाहे परमात्मा का करो, किन्तु दर्शन तो अपने हाथ का ही करो. और साथ-ही-साथ यह भावना करो कि –
इन हाथों से दीन-दुखियों की वेदना के अश्रु पोछूँगा.
इन हाथों से प्रभु का अर्चन-पूजन करूँगा.
इन हाथों से खूब परिश्रम करके मेहनत की रोटी कमाऊँगा.
इन हाथों से कोई दुराचार नहीं करूँगा.
इन हाथों से किसी के अधिकारों को नहीं छीनूँगा.
इन हाथों से किसी के ऊपर कोई आघात नहीं करूँगा.
इन हाथों से चोरी, जुआ या अन्य पापाचार नहीं करूँगा.
इन हाथों से किसी को धक्का देकर नहीं गिराऊँगा.
प्रभु ने यह हाथ सत्कर्म करने के लिये दिये हैं, अतः इनका उपयोग सत्कर्म में ही करूँगा और इनकी सहायता से भवसागर भी तर जाऊँगा. जिसके जीवन में संयम नहीं और प्रभु की भक्ति के लिए जिसके पास कोई नियम नहीं, उसका जीवन व्यर्थ है. . सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)
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