Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि देवता, पशु और मानव- बेचारे पशु अज्ञानी है. जन्म के तीन साल बाद तो वे अपनी माँ को भी भूल जाते हैं. फिर प्रभु को याद करके जीवन की सार्थकता कहाँ से प्राप्तकर सकते हैं. देवताओं का जीवन विशेषकर सुख सुविधा प्रधान है.
पुण्य की सारी कमाई सुख सुविधा में खर्च करने के बाद उनकी हालत दयनीय हो जाती है. ऐसी स्थिति में प्रभु की प्राप्ति कहाँ से हो सकती है. किन्तु मनुष्य को तो प्रभु ने ऐसी बुद्धि दी है कि वह विवेक पूर्वक संसार के सुखों को प्राप्त कर सकता है और भक्तिमय जीवन व्यतीत करके भगवान को भी प्राप्त कर सकता है.
मनुष्य देह में बैठा हुआ जीव ही- “मैं कौन हूं”- यह विचार करके” मैं तुच्छ नहीं, किन्तु शुद्ध चैतन्यमय परमात्मा का अंश हूँ- ऐसी अनुभूति प्राप्त कर सकता है. इसलिए हमें मानव देह प्राप्त हुई है, यह अहोभाग्य की बात है. भक्ति रहित योग ही नहीं सब कुछ व्यर्थ है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).