पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान् की द्वारिका लीला में एक बहुत अच्छा प्रसंग श्रीमद्भागवत महापुराण में आता है कि- जब भगवान् द्वारिका के महलों में पहुंचे, बहुत स्वागत हुआ। यथा योग्य प्रभु सबसे मिलते हैं। जो बराबरी वाले हैं, उनसे हाथ मिलाते हैं, बड़ों के चरणों में भगवान् सिर टेकते हैं, जो छोटे हैं उन्हें आशीर्वाद देते हैं। जब भगवान महलों में पहुंचते हैं तो माता-पिता को प्रणाम करते हैं। यहां एक बात बहुत सुंदर लिखी हुई है कि- जब भगवान् की महरानियों ने भगवान् का दर्शन किया,बहुत दिनों का वियोग था, प्रभु की सुंदरता इतनी है कि- जो देखता है,गले लगाना चाहता है। आनंद रामायण में लिखा हुआ है कि- जब भगवान् राम चौदह वर्ष के लिये वनवासी हुए और दंडकारण्य में पहुंचे, वह ऋषि-मुनि जो कंदमूल फल खाकर,कोपीन धारणकर, हजारों वर्षों से तप कर रहे थे, जब श्रीराम का दर्शन हुआ तो उन्हें लगा कि हम राम के गले से लगते रहें बहुत काल तक। अपनी मनो व्यथा प्रकट कर दी,बोले- श्रीराम हृदय चाहता है कि आपसे लिपट जायें, रो पड़ें, आपसे अलग न हों! क्या कभी ऐसा अवसर हमें मिलेगा ? भगवान् ने कहा, देखो इस समय मैं मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर आया हूं, इसीलिए मुझे मर्यादा की रक्षा करनी है। हां यदि तुम्हें हमारे गले ही लगना है तो द्वापर के अन्त में जब मैं श्रीकृष्ण बनूंगा तो तुम सब गोपियां बनकर आ जाना, तुम्हारी कामना पूर्ण होगी, तुम्हारी इच्छा अधूरी नहीं रहेगी, पर इसके लिए तुम्हें गोपांगना बनना पड़ेगा। ऋषियों ने कहा, स्त्री तो क्या, आप पशु-पक्षी भी बनने को कह दो तो भी हम तैयार हैं। दंडकारण्य में तपस्यारत महर्षि, भगवान् की सुन्दरता देखकर मोहित हुए और भगवान् के गले लगने के लिये गोपांगना भाव से गोपियां बनने के लिये तैयार हो गये। इसीलिए रासमंडल की जितनी गोपांगनाएं थीं,वे देव-कन्या, राज-कन्या या महर्षि थे। क्योंकि नारायण के साथ तो नारायण भाव को प्राप्त जीव ही मिल सकता है, सामान्य जीव की वहां गति ही नहीं है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)