वाराणसी। केदारखंड में तिल-तिल बढ़ते बाबा तिलभांडेश्वर विराजमान हैं तो विशेश्वर खंड में अंश-अंश झुकता रत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। जो कहीं नहीं होता वह काशी में सचल होता है। जो कहीं नहीं दिखता वह काशी में साक्षात नजर आता है। औघड़दानी भगवान शिव और उनकी प्रिय नगरी काशी दोनों निराली हैं। सावन के महीने में मां गंगा स्वयं रत्नेश्वर महादेव का जलाभिषेक करती हैं।
महाश्मशान के पास बसा करीब तीन सौ वर्ष पुराना यह दुर्लभ मंदिर आज भी लोगों के लिए आश्चर्य ही है। मणिकर्णिका घाट के समीप दत्तात्रेय घाट पर स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर रत्नेश्वर महादेव तीन सौ सालों से अधिक का इतिहास समेटे हुए हैं। प्राचीन रत्नेश्वर महादेव का मंदिर एक तरफ झुका हुआ है। यह मंदिर छह महीने तक पानी में डूबा रहता है। बाढ़ के दिनों में 40 फीट ऊंचे इस मंदिर के शिखर तक पानी पहुंच जाता है। मंदिर का इतिहास भी बेहद दिलचस्प बताया जाता है। इस मंदिर के निर्माण बारे में भिन्न-भिन्न कथाएं कही जाती हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि रत्नेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना राजमाता महारानी अहिल्याबाई होल्कर की दासी रत्नाबाई ने करवाया था। आधार कमजोर होने के कारण कालांतर में यह मंदिर एक ओर झुक गया। गर्भगृह में एक या दो नहीं बल्कि, कई शिवलिंग स्थापित हैं। इसे शिव की लघु कचहरी कहा जा सकता है। कई लोग तीर्थ यात्रियों और श्रद्धालुओं को इसे काशी करवट बताकर मूर्ख बनाते हैं। जबकि काशी करवट मंदिर कचौड़ी गली में है।