राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि हम लोग दत्तचित्त हो जब भागवत कथा में बैठते हैं, श्रवण करते हैं, तो कलि यहां प्रवेश नहीं कर सकता। जैसे राजा परीक्षित ने कलि का निग्रह किया है, यह कथा कलि का निग्रह करती है। लेकिन जब तक भगवान का अनुग्रह न हो तब तक कथा में प्रवेश नहीं होता। जीवन है सर्प और नेवले के बीच का युद्ध। सुना है कि जब सर्प और नेवले के बीच युद्ध होता है और जब सर्प नेवले को काट लेता है, जहर फैलने लगता है नेवले के शरीर में, तब वह भागता है और एक जड़ी बूटी होती है, उसको सूंघ लेता है, तो उसका जहर उतर जाता है। उस जड़ी-बूटी में ऐसा गुण है। फिर आ जाता है वह सर्प के साथ युद्ध करने, उसे मौका मिलता है तो वह तो सर्प को नोचता है, इस प्रकार युद्ध करते हुए नेवला अन्त में सर्प पर विजय प्राप्त कर लेता है। संसार यह है, वह सर्प! और हमारा युद्ध चल रहा है संसार सर्प के साथ। संशय, संसार, काम और काल को सर्प कहा गया है।काम भुजंग डसत जब जाहीं। विषय नीम कटु लागत नाहीं।। जब शुकदेवजी महाराज की वंदना करते हैं सूत जी भागवत के अन्त में तो कहते हैं-योगीन्द्राय नमतस्मै शुकाय ब्रह्मरूपिणे।संसारसर्पदष्टं यो विष्णुरातममूमुचत्।। दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि तो जब जब यह काम सर्प, काल- सर्प, संशय सर्प, संसार सर्प डसता है हमें, और जीवन में जहर फैल जाता है, तब-तब उस बुद्धिमान नेवले की भांति हमें भी चाहिए कि हम जड़ी-बूटी को सूंघ लें, ताकि जहर उतर जाय और उस जड़ी बूटी का नाम है श्रीमद् भागवत्। भागवत् कथा ही वह जड़ी बूटी है। जो जहर जीवन में फैला है, वह इसके सूंघने से दूर हो जाता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।