राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी सतीमोह, दक्षयज्ञ, हिमाचल और मैना का तप, भगवती पार्वती के प्राकट्य की कथा मोह का अर्थ अज्ञान से है, हमारे आपके जीवन में दुःख का मूल कारण अज्ञान ही है। कभी भी दुःखों का अंत होगा, उसके पीछे ज्ञान ही कारण बनेगा। सत्संग से मनुष्य ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है, ज्ञान होने के बाद जीवन में प्रारब्ध बस जो कुछ परिस्थितियां हों, लेकिन व्यक्ति के दुःखों का अंत हो जाता है। दुःखों की निवृत्ति के तीन ही साधन हैं। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य। संसार में क्या सत्य है, क्या असत्य है, इसका बोध, इसी को ज्ञान कहते हैं। जो असत्य है उससे दूर हो जाना, इसी को वैराग्य कहते हैं। जो सत्य है,उससे जुड़ना, इसी को भक्ति कहते हैं। सत्य परमात्मा है, जो तीनों काल में सत्य है। परमात्मा का कभी अभाव नहीं है और असत्य जगत है जो निरंतर विछुड़ रहा है। सत् का कभी अभाव नहीं है, असद् की कभी सत्ता नहीं है। असत्य में हम मन लगाये रहेंगे तो दुःखी रहेंगे और संसार में रहते हुए जब परमात्मा का हम चिंतन करेंगे और उनको उपलब्ध होना चाहेंगे तो हम सुखी हो जायेंगे। हम कर्म क्या कर रहे हैं, इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम किस भावना से कर्म कर रहे हैं। अगर सर्व जन सुखाय- सर्व जन हिताय की भावना से कर्म कर रहे हैं तो यह सात्विक कर्म की श्रेणी में माना जाता है, ऐसे कर्म का फल है- शांति, ईश्वर की प्राप्ति। जब हम केवल अपना दिखावा करते हैं अपने मान-सम्मान के लिए कर्म करते हैं, तो राजस श्रेणी में वह कर्म चला जाता है और उसका फल है थोड़ी अशांति, थोड़ी परेशानी लेकिन जब हम किसी को नुकसान पहुंचाने या नीचा दिखाने की भावना से कर्म करते हैं तो वह कर्म तामस कर्म की श्रेणी में चला जाता है और उसका परिणाम है, भयानक अशांति और कष्ट है। इस दृष्टि से देखा जाय तो दक्ष महाराज ने जो यज्ञ किया है, वह भगवान शंकर को के अपमान की भावना से किया। इस कारण उनका यज्ञ तामस कर्म की श्रेणी में चला गया, इसलिए दक्ष महाराज को हानि सहना पड़ा। हिमाचल और मैना का तप, भगवती पार्वती का प्राकट्य। इंद्रियों को तत् तत विषयों से मोड़कर मन को परमात्मा से जोड़ने का नाम तप है। इसी को साधन कहते हैं और ऐसा साधन जो करते हैं उन्हीं को साधक कहते हैं। साधन करने से ईश्वर के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है और वही श्रद्धा ईश्वर से मिलाने वाली है। हिमाचल मैना ने तप किया, श्रद्धा स्वरूपा भगवती पार्वती पुत्री के रूप में प्राप्त हुईं और उन्हीं भगवती पार्वती के माध्यम से उन्हें शिव की प्राप्ति हुई। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान
(वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, चातुर्मास का पावन अवसर, महाराज श्री श्रीघनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्रीशिवमहापुराण ज्ञानयज्ञ के षष्टम दिवस की कथा में भगवती पार्वती के प्राकट्य की कथा का वर्णन किया गया। कल की कथा में भगवती पार्वती का तप और शिवविवाह की कथा का वर्णन होगा और पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में उत्सव महोत्सव मनाया जायेगा।