ईश्वर की शरण में जाने से ही मिलती हैं शांति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मम माता मम पिता गृहेदं गृहणी मम। एतदन्तं च सर्वत्र सम्मोह इति कीर्तितः ।।स्कन्द पुराण।। मोह किसको कहते हैं ? मम माता- ये मेरी माता है। मम पिता- ये मेरे पिता है। ग्रहेयं- ये घर मेरा है। मम गृहणी-ये पत्नी मेरी है। इसी का नाम मोह है। शरीर को मैं मानना और शरीर से संबंध रखने वालों को मेरा मानना, यही मोह है। यही समस्त अनर्थों कि जड़ है। जीव को भौतिक संपत्ति कितनी भी क्यों न मिल जाये, सारे संसार की भौतिक संपत्ति मिलने के बाद भी जीव को तब तक शांति नहीं मिलेगी, जब तक वो ईश्वर की शरण में नहीं आयेगा। रावण मोह का प्रतीक है। रावण विभीषण को हर प्रकार की सुख-सुविधा देने के लिए तैयार है, भजन छोड़ कर। किंतु जीव में यदि विवेक होता है तो जीव हर सुख छोड़ने को तैयार हो जाता है, भजन नहीं छोड़ पाता। कैकेई अम्बा ने सोचा था, मैं अपने पुत्र के लिये राज्य मांग कर पुत्र को सदा के लिये सुखी बना दूंगी और मैं भी सुखी हो जाऊंगी। व्यक्ति कुर्सी का सम्मान करता है। आज राम का हो रहा है, महाराज दशरथ का हो रहा है, जब मेरा पुत्र भरत सिंहासन पर बैठेगा तो उसका भी सम्मान होने लगेगा और फिर भरत के नाते मेरा भी होगा, क्योंकि मैं भरत की मां हूं और भरत भी यह सोचकर सम्मान करता रहेगा कि मां ने मेरे लिये इतना बड़ा त्याग किया है। इस सारी बातों को लेकर कैकई अम्बा बड़ी प्रश्न थी। लेकिन भरत लाल जी का विवेक जागृत था। वह सत्-चित और आनंद स्वरूप है। यहां यह बात ध्यान देनी है कि कैकेई अंबा ने राज्य के लिये राम को त्याग दिया और उन्हीं के पुत्र भरत ने राम के लिये राज्य त्याग दिया। माँ राज्य के लिये राम को त्यागती है। पुत्र भरत, राम के लिये राज्य को त्यागता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन जिला=मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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