राजस्थान/पुष्कर। कथा व्यास महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- संन्यासयोग और कर्मयोग, यह दोनों ही कल्याण कारक हैं। मुक्ति कारक हैं। दोनों कल्याणकारी हैं। संन्यासयोग, ज्ञानयोग के मार्ग से चलने वाला और कर्मयोग के मार्ग से चलने वाला, दोनों का कल्याण होता है। लेकिन साधन काल में संन्यासयोग की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है। उनको संन्यासी ही समझना चाहिए जो किसी अप्रिय से द्वेष नहीं करता और प्रिय की इच्छा नहीं करता। कपड़ों से कोई सन्यासी नहीं होता। अगर कपड़े से ही कोई सन्यासी हो जाता और संन्यास का फल पा जाता फिर तो संन्यास बड़ा सस्ता होता। आश्रम बदलने से, संन्यासी के कपड़े पहनने से कोई कल्याण नहीं होता, जब तक मन न बदल जाये। मन में आश्चर्यजनक परिवर्तन भजन और सत्संग से होता है। आपने गृहस्थ आश्रम छोड़कर सन्यास ले लिया, आश्रम तो बदल गया पर मन बदल गया या नहीं, यह देखना है। कपड़े बदलने के साथ कपड़े में तो रंग चढ़ गया पर मन में संन्यास का रंग चढ़ा या नहीं। सिर्फ संन्यास से काम न चलेगा।
छठवां अध्याय ध्यान योग कहलाता है। व्यक्ति को ध्यान कैसे करना चाहिए? ध्यान की पद्धति क्या है? मन को शांति कैसे मिले? आज प्रत्येक व्यक्ति का ज्वलन्त प्रश्न है, मुख्य प्रश्न है। मन एक जगह टिकता नहीं है। पूजा-पाठ करने बैठे तब भी वह भागता है। उसका समाधान प्रभु ने छठवें अध्याय में किया हुआ है। ईश्वर के ध्यान से मन निर्मल और एकाग्र होता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)