पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा अस्तेय अर्थात् चोरी न करना। शास्त्र कहते हैं:, जो चोरी नहीं करता, उसके घर नवरत्नों से खजाना भरा रहता है। वह जल्दी गरीब नहीं होता। वेदों में लिखा है- हे जीव! तुम अपनी शुद्ध कमाई में संतुष्ट रहो, दूसरों के धन की इच्छा ही न करो। जो गरीब होकर भी चोरी नहीं करता, वह अंततोगत्वा सुखी होकर जीवन बिताता है। ईमानदारी की कमाई से बनने वाला भोजन अमृत के समान है, जो खाने वाले के हृदय और बुद्धि को निर्मल बनाता है। इसके विपरीत बेईमानी करने वाला घृणा, उपहास और दंड का पात्र तो बनता ही है, गलत कमाई से उसकी संतान बिगड़ती है और वह अशांत रहता है। रांका महाराष्ट्र का निर्धन भक्त हुआ है। वह लकड़ियां काटकर, बेचकर ताजी रोटी कमाता और प्रभु का भजन करता था। उसकी धर्मपत्नी भी सुशील और भक्त थी। एक दिन दोनों जंगल में लकड़ी लेने जा रहे थे, कि नामदेव जी के कहने पर प्रभु श्री कृष्ण ने सोने का थैला राह में रख दिया। रांका आगे था उसने सोचा यह पराया धन है, कहीं पत्नी का मन ललचा न जाये, इस विचार से वह मिट्टी डालकर सोने को छिपाने लगा। पीछे पत्नी देख रही थी बोली पतिदेव! आप मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे हैं? छोड़िए और आगे बढ़िये। राका हतप्रभ होकर पत्नी को स्नेह भाव से देखने लगा और गद्गद होकर बोला, ‘देवी ,धन्य है तुम्हारी भक्ति! तुम मुझसे भी एक कदम आगे निकली। मैं तो सोना जानकर मिट्टी डाल रहा था और तुमने सोने को मिट्टी कहकर अनासक्ति का परिचय दिया है। आज से तुम रांका कि बांका होगी। सुदामा भगत की गरीबी का कारण सहयोगी विद्यार्थी श्रीकृष्ण के चने चुराकर खाना ही तो था। वही सुदामा लंबे पश्चाताप, भजन के बाद भगवान् से मिले तो मालामाल हो गये। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।