तपस्वी को स्वयं करना चाहिये अपना कार्य: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीरामावतार का कारण एवं श्रीरामजन्म की कथा का गान किया गया एवं श्रीरामजन्म महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। सत्संग के अमृत बिंदु-एक बार भगवान् शंकर कैलाश पर्वत पर वट वृक्ष के नीचे पधारे। वृक्ष को देखकर उन्हें बहुत सुख मिला। अपने हाथ से बाघम्बर विछाकर सहज भाव से विराजमान हो गये। निज कर डासि नागरिपु छाला। बैठे सहजहिं संभु कृपाला।। भगवत् तत्व के वक्ता को श्री शंकरजी अपने चरित्र से उपदेश दे रहे हैं- वह अपने शरीर की सेवा कराने की अपेक्षा न करे। “स्वयं दासास्तपस्विनः” तपस्वी को अपना कार्य स्वयं करना चाहिये, अतः अपने हाथ से आसन बिछाया। उपदेशक को अपने चरित्र से धर्म मार्ग का उपदेश करना चाहिये। धर्ममार्गं चरित्रेण’ पूजापाठ में, साधन नियम में और सन्ध्योपसनादि नित्यकर्म में आसन का विशेष महत्व है। कुशासनपर बैठकर साधन करने से आयु की वृद्धि होती है। मोक्ष की कामना वाले को व्याघ्रासनपर, समस्त सिद्धि के लिए मृगचर्म और कम्बलासन का प्रयोग उचित है। सूती आसन से दारिद्र्य, बिना आसन के भूमि पर बैठने से शोक और पाषाण पर बैठने से रोग होता है। काष्ठासन पर बैठकर पूजा आदि करने से समस्त परिश्रम व्यर्थ हो जाते है। आसन अपना होना चाहिये अन्यत्र जायें, तो अपना आसन लेकर जाना चाहिये, माला ग्रंथ और आसन यह सब अकारण जल्दी नहीं बदलना चाहिए। रामावतार का कारण- जय-विजय को सनकादिकों का श्राप, सती वृंदा का श्राप, देवर्षि नारद जी का श्राप, मनु महाराज की कठिन तपस्या और उनके सामने भगवान का प्राकट्य एवं वरदान की प्राप्ति। राजा प्रतापभानु को ब्राह्मणों द्वारा श्राप और उनके उद्धार के लिये भगवान का अवतार हुआ। श्रीराम जन्म की कथा का गान किया गया एवं उत्सव महोत्सव मनाया गया।।जय श्री सीताराम।।

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