त्याग करने से परमात्मा की होती है प्राप्ति: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि त्याग से भगवत्प्राप्ति गृहस्थ आश्रम में रहता हुआ भी मनुष्य त्याग के द्वारा परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। परमात्मा को प्राप्त करने के लिए त्याग ही मुख्य साधन है। निषिद्ध कर्मों का सर्वथा त्याग- चोरी, अनाचार, झूठ, कपट, छल, हिंसा, अभक्ष्यभोजन और प्रमाद आदि शास्त्रविरुद्ध निम्न कर्मों का मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी न करना, यही निषिद्ध कर्मों का त्याग है, यह आवश्यक है। काम्य कर्मों का त्याग- स्त्री, पुत्र और धन आदि प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति के उद्देश्य से एवं रोग, संकट आदि की निवृत्ति के उद्देश्य से किए जाने वाले यज्ञ, दान, तप और उपासनादि सकाम कर्मों को अपने स्वार्थ के लिए न करना, यही काम्य कर्मों का त्याग है। ईश्वर प्राप्ति में बाधक है। निष्काम भाव से ईश्वर की प्रसन्नता के लिए कर्म करना, यही श्रेष्ठ कर्म है और मुक्तिकारक है। तृष्णाका सर्वथा त्याग- मान, बड़ाई, प्रतिष्ठा, पुत्र,
धनादि जो कुछ भी अचिंत्य पदार्थ प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त हुए हों, उनके बढ़ने की इच्छा को भगवत्प्राप्ति में बाधक समझकर उसका त्याग करना, यही तृष्णा का त्याग है। स्वार्थ के लिए दूसरों से सेवा कराने का त्याग- अपने सुख के लिए किसी से भी धनादि पदार्थों की अथवा सेवा कराने की याचना करना एवं बिना याचना के दिए हुए पदार्थों को या की हुई सेवा को स्वीकार करना तथा किसी प्रकार भी किसी से अपना स्वार्थ सिद्ध करने की मन में इच्छा रखना इत्यादि जो स्वार्थ के लिए दूसरों से सेवा कराने के भाव हैं, उन सबका त्याग करना, यही स्वार्थ के लिए दूसरों से सेवा कराने का त्याग है। सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों में आलस्य और फलकी इच्छा का सर्वथा त्याग- ईश्वर की भक्ति, देवताओं का पूजन, माता-पितादि गुरुजनों की सेवा, यज्ञ, दान, तप तथा वर्णाश्रम के अनुसार आजीविका द्वारा गृहस्थ का निर्वाह एवं शरीर- सम्बन्धी खान-पान इत्यादि जितने कर्तव्य कर्म हैं, उन सब में आलस्य का और सब प्रकार की कामना का त्याग करना। ईश्वर-भक्ति में आलस्य का त्याग। ईश्वर-भक्ति में कामना का त्याग। देवताओं के पूजन में आलस्य और कामना का त्याग। माता-पिता गुरुजनों की सेवा में आलस्य और कामना का त्याग। यज्ञ, दान और तप आदि शुभ कर्मों में आलस्य और कामना का त्याग। आजीविका द्वारा गृहस्थ-निर्वाह के उपयुक्त कर्मों में आलस्य और कामना का त्याग। शरीर सम्बन्धी कर्मों में आलस्य और कामना का त्याग। संसार के संपूर्ण पदार्थों में और कर्मों में ममता और आसक्ति का सर्वथा त्याग। धन, भवन और वस्त्रादि सम्पूर्ण वस्तुएं तथा पुत्र और मित्रादि सम्पूर्ण बान्धवजन एवं मान, बड़ाई और प्रतिष्ठा इत्यादि इस लोक के और परलोक के जितने पदार्थ हैं उन सबको क्षणभंगुर और नाशवान होने के कारण अनित्य समझकर उनमें ममता और आसक्ति न रखना तथा केवल एक सच्चिदानंद घन परमात्मा में ही अनन्यभाव से विशुद्ध प्रेम होने के कारण मन, वाणी और शरीर द्वारा होने वाली सम्पूर्ण क्रियाओं में और शरीर में भी ममता और आसक्ति का सर्वथा अभाव हो जाना, यही संसार के सम्पूर्ण पदार्थों में और कर्मों में ममता और आसक्ति का सर्वथा त्याग है। संसार, शरीर और सम्पूर्ण कर्मों में सूक्ष्म वासना और अहंकार का सर्वथा त्याग। संसार के सम्पूर्ण पदार्थ माया के कार्य होने से सर्वथा अनित्य हैं और एक सच्चिदानंद परमात्मा ही सर्वत्र समभाव से परिपूर्ण है; ऐसा दृढ़ निश्चय होकर शरीर सहित संसार के सम्पूर्ण पदार्थों में और सम्पूर्ण कर्मों में सूक्ष्म वासना का सर्वथा अभाव हो जाना अर्थात् अन्तःकरण में उनके चित्रों का संस्कार रुप से भी न रहना एवं शरीर में अहंभाव का सर्वथा अभाव होकर मन, वाणी और शरीरद्वारा होने वाले सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन के अभिमान का लेशमात्र भी न रहना, यही संसार, शरीर और संपूर्ण कर्मों में सूक्ष्म वासना और अहंभाव का सर्वथा त्याग है। ईश्वर प्राप्ति के लिए आवश्यक है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नव-निर्माणाधीन गोवर्धनधाम आश्रम के साधु संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर राजस्थान। नव-निर्माणाधीन,”गोवर्धनधामआश्रम” “गोवर्धनधाम कॉलोनी” परिक्रमामार्ग दानघाटी-गोवर्धन जिला-मथुरा (उत्तर प्रदेश)l