पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि भारतीय महर्षियों की दृष्टि से सच्चा धर्म या सच्ची संस्कृति वही है, जो मानवों के ऐहिक कल्याण तथा मोक्ष का साधन उपस्थित करती है। प्रत्येक मानव हृदय में ईश्वर का वास होने के कारण यहां न कोई उच्च है और न कोई नीच, सब समान है।
जो धर्म मनुष्य को आहार, निद्रा आदि सामान्य धरातल से ऊपर उठाता है, वस्तुतः वही धर्म है। निश्चित ही भारत ऐसा राष्ट्र है, जिसकी भूमि पर धर्म पनपते रहे हैं। यह भारतवर्ष की आध्यात्मिक शक्ति है। हिंदू धर्म आध्यात्मिक चिंतन की दृष्टि से बड़ा ही अनूठा धर्म है। उसमें इतनी विशालता है कि वह अपने आराध्य तक पहुंचने के लिये आराधक को अपनी रूचि के अनुसार कोई भी पूजा मार्ग अपनाने की अनुमति देता है,
क्योंकि हमारे महर्षियों ने तत्व चिंतन के द्वारा सिद्ध किया है कि सत्य और ईश्वर एक ही है, भले ही हम उन्हें अपनी रूचि के अनुसार किसी भी नाम से पुकारें नाम भिन्नता से उसके एकत्व में कोई अंतर नहीं आता। हमारा धर्म इस बात को स्वीकार करता है कि अन्य धार्मिक विद्या से भी ईश्वर की प्राप्ति संभव है। केवल आराध्य के प्रति दृढ़ विश्वास आवश्यक है। प्रकृति के गुणों से वशीभूत होकर जीव कर्म करने के लिये मजबूर है,
जब तक शरीर है, कर्म होते ही रहते हैं, कर्म से बचने का उपाय नहीं है, किंतु कर्म के बंधन से बचने के लिये उपाय है। क्या करें? बोले- तू यज्ञ कर्म कर, अपने कर्म को तू यज्ञ बना। अपने कर्मों द्वारा भगवान् की पूजा कर। तो ठाकुर के निमित्त कर्म हो, फल की आसक्ति से रहित कर्म हो, श्रेष्ठतम ढंग से किया हुआ कर्म हो, तब वह कर्म यज्ञ का रूप ले लेता है। यज्ञ का रूप जब ले लेता है तो वह कर्म बांधता नहीं है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।