राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीपद्म महापुराण, माहात्म्या पुराणं श्रृणुयान्नित्यम्। धर्म शास्त्रों में श्रीपद्ममहापुराण की बड़ी महिमा का वर्णन किया गया है। श्रीपद्ममहापुराण को साक्षात श्रीहरि का रूप बताया गया है। जिस प्रकार संपूर्ण जगत् को आलोकित करने के लिए भगवान सूर्य के रूप में प्रकट होकर हमारे बाहरी अंधकार को नष्ट करते हैं, उसी प्रकार हमारे हृदयान्धकार- भीतरी अंधकार को दूर करने के लिए श्रीहरि ही पुराण विग्रह धारण करते हैं। जिस प्रकार पूजा-पाठ, संध्या- वंदन, ईश्वर की आराधना सभी को नित्य करना चाहिये। उसी प्रकार सत्संग, पुराणों का श्रवण भी सबको नित्य करना चाहिये। श्रीपद्ममहापुराण में अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष-चारों का बहुत सुंदर निरूपण हुआ है और चारों का एक-दूसरे के साथ क्या संबंध है- इसे भी भली-भांति समझाया गया है। धर्म का फल है- संसार के बंधनों से मुक्ति, भगवान की प्राप्ति। उससे यदि कुछ सांसारिक संपत्ति उपार्जन कर ली तो यह उसकी कोई सफलता नहीं है।
इसी प्रकार धन का फल है- एकमात्र धर्म का अनुष्ठान, वह न करके यदि कुछ भोग की सामग्रियां एकत्रित कर लीं, तो यह कोई लाभ की बात नहीं है। भोग की सामग्रियों का भी यह लाभ नहीं है कि उनसे इंद्रियों को तृप्त किया जाय, जितने भोगों से जीवन-निर्वाह हो जाय, उतने ही भोग हमारे लिए पर्याप्त है। तथा- जीवन- निर्वाहका, जीवित रहने का फल यह नहीं है कि अनेक प्रकार के कर्मों के पचड़े में पड़कर, इस लोक या परलोक का सांसारिक सुख प्राप्त किया जाय। उसका परम लाभ तो यह है कि- वास्तविक तत्व को- भगवततत्व को जानने की शुभ इच्छा हो। यह तत्व-जिज्ञासा पुराण के श्रवण से भलीभांति जगायी जा सकती है। इतना ही नहीं, सारे साधनों का फल है- भगवान् की प्रसन्नता प्राप्त करना। यह भगवत्प्रीति भी पुराण के श्रवण से सहज में ही प्राप्त की जा सकती है। इसलिए यदि भगवान को प्रसन्न करने का मन में संकल्प हो तो सभी मनुष्यों को निरंतर परमात्मा के अंगभूत श्रीपद्ममहापुराण का श्रवण करना चाहिये। इसीलिये श्रीपद्ममहापुराण का पूरे जगत में इतना आदर रहा है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम-वात्सल्यधाम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के पावन अवसर पर श्रीपद्म- महापुराण के महात्मा एवं मंगलाचरण का गान किया गया। कल की कथा में भीष्म और पुलस्त्य संवाद एवं श्रीहरि के अन्य चरित्रों का गान किया जायेगा।