पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री हनुमान जयंती महामहोत्सव श्री हनुमान जी का अवतरण दिवस- चैत्र पूर्णिमा अयोध्या में पुत्रकामेष्टि यज्ञ हुआ। यज्ञ का प्रसाद महाराज दशरथ ने महारानी कौशल्या कैकेई सुमित्रा को दिया। महारानी कैकेई प्रसाद रख करके स्नान करने चली गई, सोचा स्नान करने के बाद प्रसाद ग्रहण करेंगे। तब तक एक पक्षी आया और प्रसाद ले करके दक्षिण की तरफ चला गया, उधर अंजनी मां को भगवान शंकर ने सन्यासी के रूप में कहा था कि आपके हाथ में अचानक कोई प्रसाद आ जाय, आप ग्रहण कर लेना, श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति होगी। अंजनी मां सूर्यार्घ्य दे करके, हाथ जोड़कर खड़ी थी कि पक्षी से प्रसाद छूटकर अंजनी मां के हाथ में आ गया और मां ने प्रसाद ग्रहण किया, जिस प्रसाद से ही हनुमान जी महाराज का प्राकट्य हुआ, इसका संकेत पूज्य श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्री हनुमान चालीसा में किया है। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरत सम भाई। मां कैकेई के प्रसाद से हनुमान जी प्रकट हुये हैं इस बात का हनुमान चालीसा के इस मंत्र में संकेत है। श्री हनुमान जी महराज प्रभु श्रीराम से केवल छः दिन छोटे हैं।
चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को प्रभु श्रीराम चारों भाइयों का अवतरण हुआ और चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन श्री हनुमान जी महाराज का अवतरण हुआ। प्रभु श्रीराम का अवतरण मध्यान्ह दिन में हुआ और श्री हनुमान जी महाराज का अवतरण भी मध्यान्ह दिन में हुआ। श्री हनुमान जी महाराज का दृढ़ सिद्धांत-हनुमत्नाटकं में श्री हनुमान जी महाराज कहते हैं- सबसे बड़े भगवान हैं। भगवान से भी बड़ा भगवान का नाम है और भगवान के नाम से भी बड़ा भगवान का काम है। साधकों के मन में एक स्वाभाविक प्रश्न होगा कि भगवान सबसे बड़े हैं यह बात समझ में आ गई। भगवान का नाम उससे भी बड़ा है यह बात भी समझ में आ गई। लेकिन भगवान का काम क्या है? तो आचार्यगण कहते हैं परमार्थ ही भगवान का कार्य है। परमार्थ के कार्यों से ही व्यक्ति बनता है महान। श्री हनुमान जी महाराज की नाम निष्ठा-सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।। श्री हनुमान जी महाराज की भागवत कैंकर्य निष्ठा-हनुमान तेहिं परसा करि पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काज किन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम।। श्री हनुमान जी महाराज की ईष्ट निष्ठा-बार बार रघुबीर संभारी।
तरकेउ पवन तनय बलभारी।। श्री हनुमान जी महाराज का बड़ों के प्रति सम्मान-जामवंत मैं पूछहुं तोही। उचित सिखावन दीज्यौ मोही।। जामवंत के बचन सुहाये। सुनि हनुमंत हृदय अति भाये।। श्री हनुमान जी महाराज की विनम्रता-अस कहि नाइ सबन्ह कहुँ माथा।। अनंत गुणगण निलय श्री हनुमान जी महाराज के श्री चरणों में समग्र भक्तों का कोटिसः बंदन। सुंदरकांड के प्रारंभ में श्री हनुमान जी महाराज के मंगलमय चरित्र से सीखने वाली कुछ बातें, जो हमारे आपके जीवन में सफलता का सूत्र बन सकते हैं। 1- बड़ों के अनुभव का आदर करना।2- अपने इष्ट पर विश्वास। 3- उत्साही जीवन। 4- विनम्रता। 5- भगवान् का सतत स्मरण। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान) ।