राजस्थान/पुष्कर।परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीपद्ममहापुराण में तीर्थ गुरु पुष्कर की महिमा बताते हुये भगवान व्यास कहते हैं। पुष्कर इस पृथ्वी पर सब तीर्थों में श्रेष्ठ बताया गया है। संसार में इससे बढ़कर पुण्यतीर्थ दूसरा कोई नहीं है। इसे आदितीर्थ भी कहते हैं। कार्तिक की पूर्णिमा को यह विशेष पुण्य दायक होता है। सरस्वती ब्रह्मा की पुत्री है, वह पुण्यसलिला एवं पुण्यदायिनी नदी हैं। कनका, सुप्रभा, नंदा, प्राची और सरस्वती- ये पांच स्रोत्र पुष्कर में विद्यमान हैं। इसलिए ब्रह्मा जी ने सरस्वती को पंचस्रोता कहा है। उसके तट पर अत्यंत सुंदर तीर्थ और मंदिर है, जो सब ओर से सिद्धों और मुनियों द्वारा सेवित है। महापातकी मनुष्य भी पुष्करतीर्थ के दर्शन मात्र से पाप रहित हो जाते हैं और शरीर छूटने पर स्वर्ग को जाते हैं। पुष्कर में उपवास करने से पौण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है। पुष्कर में सुधावट नामक एक पितामह संबंधी तीर्थ है, जिसके दर्शनमात्र से महापातकी पुरुष भी शुद्ध हो जाते हैं। भगवान श्री रामचंद्र ने भी सुधावट तीर्थ में आकर मार्कण्डेय जी के कथन अनुसार अपने पिता दशरथ जी के लिए पिंड-दान और श्राद्ध किया था। इस तीर्थ में जो पितृकार्य किया जाता है, उसका अक्षय फल होता है। पितर और पितामह संतुष्ट होकर उन्हें उत्तम जीविका की प्राप्ति के लिये आशीर्वाद देते हैं। वहां तर्पण करने से पितरों की तृप्ति होती है और पिंडदान करने से उन्हें स्वर्ग मिलता है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के पावन अवसर पर, श्रीपद्ममहापुराण कथा के चौथे दिवस पुष्कर महिमा का गान किया गया। कल की कथा में श्रीपद्ममहापुराण के आगे के चरित्रों का गान किया जायेगा।