पूर्णब्रह्म परमात्मा हैं भगवान गणेश: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि स्मार्त अर्थात् वेद के मार्ग पर चलने वाले लोग पंचदेव उपासक होते हैं। यह पांच देव हैं। 1- श्री विष्णु जी 2-श्री शिव जी 3-श्री शक्ति 4-श्री सूर्य और 5-श्री गणपति जी। इसमें जो स्मार्त (वेद के मार्ग पर चलने वाले) वैष्णव हैं। वह विष्णु को मुख्य अंगी और शेष चारों को उनके अंग मानकर पूजा करते हैं। इसी प्रकार स्मार्त-शैव, शिव को। शाक्त- शक्ति को, सौर्य- सूर्य को, और गणेश उपासक गणेश जी को मुख्य मानते हैं। पूजा वे पांचों देवों की करते हैं। वास्तव में देखा जाय तो नाम-रूप की भिन्नता होने पर भी तत्वतः ये पांचो एक ही है। क्योंकि मुख्य तत्व तो एक अद्वैत है। किन्तु उपासकों की भावना के अनुसार लोग उसी एक को विविध नाम रूप से पूजते हैं।

रूपैस्तु तैरपि विभासि यतस्त्वमेकः। वेद-शास्त्रों के अनुसार तो सृष्टि का आरंभ ही पुष्कर से हुआ, आर्य सदा से यहीं के निवासी हैं। कुछ लोग शंका करते हैं- श्री गणेश जी तो शिव जी के पुत्र हैं। शिव के विवाह में तो वे पैदा भी नहीं हुए थे। फिर उनका पूजन कैसे हुआ। वास्तव में गणेश जी पूर्णब्रह्म परमात्मा हैं। वे अज, अनादि एवं अनंत है।वही परमात्मा भगवान् शिव के यहां पुत्र के रूप में अवतरित हुए। जैसे श्री विष्णु अनादि हैं।राम,कृष्ण, नृसिंह, वामन, हयग्रीव ये सब उनके अवतार हैं। मनु, प्रजापति, रघु,अज ये सभी प्रभु श्री राम की उपासना करते थे। दशरथ नंदन राम अनादि राम के अवतार हैं।

देवता अनादि होते हैं। भगवान् श्री गणेश जी भगवान् शिव के यहां अवतार लिए उसके पहले नहीं थे, ऐसा नहीं। उसके पहले भी थे और उन्हीं प्रभु ने भगवान शिव के यहां अवतार लेकर के जगत को नाम,रूप, लीला, धाम का दान कर मंगल किया। सूप-सरिस बड़ कान भक्त अनुकम्पा कारक। अच्युत, जग के हेतु, सृष्टि के आदि प्रवर्तक।। प्रकृति-पुरुष तैं परे ध्यान गणपति को करिहैं। नसै सकल तिन विघ्न अवसि भव-सागर तरिहैं।। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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