भगवत कथा सुनने से धन्य होता है व्यक्ति: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवतमहापुराण का अंतिम उपदेश- मैं मरूंगा ये चिंतन अज्ञान है। मैं कभी नहीं मरता। न जायते म्रियते वा कदाचिद आत्मा कभी मरती नहीं और शरीर मरा हुआ ही है। मैं शरीर हूं, मैं संसार का हूं, ये विचार हमेशा तनाव, दुःख, भय देने वाला है। अहं ब्रह्म परमधाम- मैं परमात्मा का भक्त हूं, दास हूं, अंश हूं, पुत्र हूं, परमात्मा का हूं, ये भाव जगृत हुआ तो शांति ही शांति है। परीक्षित कहते हैं- धन्योऽस्मि कृत कृत्तोऽस्मि भवता करुणात्मना। मैं धन्य हुआ, कृतकृत्य हुआ, आपने मुझे भागवत सुनाकर धन्य बना दिया। नाम संकीर्तनम्- जिनके नाम का संकीर्तन समस्त पापों को नष्ट करने वाला है। जिनके चरणों में वंदन समस्त दुःखों का शमन करने वाला है। उनको वंदन कर मुझे तक्षक का कोई भय नहीं। अपने स्वरूप को समझ पाया मैं सच्चिदानंद परमात्मा का अंश हूं, कभी न मरने वाला हूँ। महाराज परीक्षित को तक्षक ने काटा उन्हें कीड़ी काटने जैसी पीड़ा भी नहीं हुई। क्योंकि वे भगवत भाव में डूब चुके थे। दिव्य रूप धारण करके भगवत धाम गये। देवताओं ने पुष्प बर्षाया। एक ज्योति द्विधाभूत राधामाधव रूपकम्। एक ही ज्योति दो रूप में प्रकट हो जाती है। श्री राधा-कृष्ण कैसे जैसे एक ही चने में दो दालें निकल आती हैं। दोनों दिखने में दो हैं बाकी एक हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, पितृपक्ष के पावन अवसर पर भागवत जी की कथा का गान किया गया। कल से श्री राम कथा का गान किया जायेगा।

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