राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि यस्यस्मरणमात्रेण जन्म संसारबन्धनात्। विमुच्चते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे। भगवान के नाम स्मरण से मनुष्य परम पवित्र हो, कल्याण को प्राप्त करता है। ये महर्षि पराशर ने विष्णु महापुराण में अनेक स्थानों पर कहा है। एक ही नाम कल्याण में समर्थ है। तो निरन्तर नाम की क्या आवश्यकता है। एक नाम पवित्र तो कर देगा, लेकिन बाद में भी ईश्वर का नाम लेते रहेंगे तो वह नाम भगवत् भक्ति का विस्तार करेगा। श्री विष्णु महापुराण पुराण में कहा गया है कि भगवान के एक नाम ने पाप का नाश कर दिया है, बाद में जो नाम लिया, वह भगवत भक्ति, भगवत प्रेम का विस्तार करेगा। इसलिए अधिक से अधिक भगवान के नाम का जप करना चाहिए। एक नाम से पाप धुल जाता है, लेकिन विश्वास नहीं होता, विश्वास क्यों नहीं होता तो आचार्य कहते हैं, स्वल्पपुण्यवतां राजन विश्वासोनैव जायते।जिनके जीवन में पुण्य की कमी होती है उनको विश्वास नहीं होता। भगवान के किसी नाम को छोटा नहीं समझना चाहिए। सभी नाम कल्याण प्रद है और सब के उदाहरण हैं- राम नाम का जप करके यवन तर गया, उल्टा नाम जप कर महर्षि वाल्मीकि तर गए, नारायण नाम लेकर अजामिल तर गया, राम नाम से गणिका तर गयी।भगवान के सभी नाम बराबर फल वाले हैं, जिसमें रुचि हो जप करो। पुराणों में आया है कि हजार बार नारायण कहने से जो फल होता है, एक बार हरी कहने से वही फल मिलता है। फिर यह भी लिखा है एक हजार भगवान विष्णु का नाम लेने से जो फल होता है एक बार राम कह देने से वही फल मिलता है। तो इसका क्या मतलब है? भगवान के नामों में निष्ठा बढ़े यही तात्पर्य है।
चिन्तामणि सहस्रेषु कल्पवृक्षयुतेषु च। कामधेनुर्नन्तेषु जथैको सर्वकामदः तीन चीजें विलक्षण है। जिसके कारण स्वर्गलोक अन्य जीवों के स्थल से श्रेष्ठ माना जाता है। अन्य लोकों में परिश्रम करके खाना-पीना सुख का अनुभव करना होता है। स्वर्ग में तीन चीजें रखी हैं, कुछ करने की जरूरत नहीं है। तीनों में से कहीं जाओ, मनोवांछित वस्तु प्राप्त हो जाती है।जैसे आप चिंतामणि के पास जाव और कहो हे चिंतामणि हमारी चिंतित (स्मरण) की हुई वस्तु को दे दो, कामधेनु के सामने कामना करो, कल्पवृक्ष के सामने कल्पना करो, प्राप्त हो जायेगा। एक व्यक्ति के पास एक चिंतामणि अथवा सौ चिंतामणि हो दोनों वही काम करेगी। उसमें कोई अंतर नहीं है, भगवान के सभी नाम- नित्य, दिव्य और मंगलमय हैं। कलिकाल में सर्वोपरि हैं, कहीं भी, कैसे भी, जप कर सकते हैं। समय आदि बाधक नहीं है।छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में- दिव्य चातुर्मास के अवसर पर श्री विष्णु महापुराण कथा के नवम दिवस षष्ठं अंश की कथा का गान किया गया। कल की कथा में श्री मार्कंडेय महापुराण का माहात्म्य एवं श्रीमार्कंडेय ऋषि की मंगलमय उपासना का वर्णन किया जायेगा।