पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि गुरु से नारायण मंत्र प्राप्त करना। गुरु को नारायण का रूप समझना। गुरु का बचा हुआ प्रसाद, गुरु का दिया हुआ प्रसाद महाप्रसाद है। जिसकी गुरु में निष्ठा हो गई, उसे नारायण की प्राप्ति हो गई। भगवान नारायण ही गुरु बनकर जीवों का कल्याण करते हैं। भगवान नारायण को प्राप्त करने के लिए पहले गुरु बनाना, उनसे दीक्षा लेना और उन्हें नारायण का ही स्वरूप मानना, गुरु के प्रति श्रद्धा रखना। “यथा देवे तथा गुरौ” ईश्वर किसे से मिलता है? जिस साधक की तीन में अभेदता हो जाए, उसे ईश्वर प्राप्त हो जाता है। अपनी आत्मा, अपने इष्ट देव और अपने गुरु, ये तीनों जिन्हें एक रूप में भासने लग जाएं। उनको सिद्धि प्राप्त होने में देर नहीं लगती, लेकिन जो इन तीनों को अलग मानते हैं, उनको शीघ्र सिद्धियां प्राप्त नहीं होती। नारायण की मानसिक पूजा भी बहुत सुलभ है और बहुत अच्छी है। बाहर पूजा करते हो, तब ठीक है, लेकिन यदि बाहर पूजा न कर सको तब मानसिक पूजन कर लेना चाहिए। मानसिक पूजन की बहुत महिमा है।
मानसी सा मता परा बाहर की पूजा की अपेक्षा मानसिक पूजा दस गुना क्या सौ गुना अधिक लाभ देती है। बाहर के पूजन में विधि विधान की आवश्यकता है, शुद्धि-अशुद्धि, सूतक-पातक सब का विचार है। लेकिन मानसिक पूजन में शुद्धि-अशुद्धि, सूतक-पातक आदि का कोई विचार नहीं है। कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय पूजन किया जा सकता है। मान लीजिए कि आपकी यात्रा में हैं भगवान नारायण की मूर्ति नहीं मिली, आप सूर्य मंडल के अंदर उनका ध्यान करके पुष्पादि अर्पण कर दो। गुरु साथ में हैं, तब उनमें ही नारायण का ध्यान करके पूजन कर लो। गुरु पूजा भी नारायण पूजा है। चंद्र मंडल के अंदर भी पूजा हो सकती है। जल के अंदर भी पूजा हो सकती है। कहीं भी पूजन कर लो। बस भावना होनी चाहिए। जय श्रीमन्नारायण।