भजन और सत्कर्म की पूंजी है सदैव मंगलकारी: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ कथा एकादश दिवसीय महामहोत्सव- (दसवां-दिवस) भगवान् श्रीकृष्ण के सखा भक्त श्रीसुदामा जी की मंगलमय कथा-भगवान श्रीकृष्ण की भक्त सुदामा से मित्रता उज्जैन सांदीपनि मुनि के गुरुकुल में विद्या अध्ययन काल में हुई थी। अध्ययन पूर्ण करके सुदामा सुदामापुरी वर्तमान में नाम पोरबंदर है, अपने माता पिता के पास चले गये और भगवान् श्रीकृष्ण अपने माता पिता के पास मथुरा आ गये। भगवान् युवराज पद पर प्रतिष्ठित हुए। कालान्तर में भगवान् श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी बसायी और भगवान् द्वारिकाधीश पद पर प्रतिष्ठित हुए। श्री सुदामा जी अपने मित्र द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण से जब मिलने आये तो भगवान ने उनका बहुत सम्मान किया। भगवान ने सुदामा जी को अपने जैसा ऐश्वर्या दे दिया। शास्त्रों में इसे सार्ष्टि मुक्ति कहा गया है।
जिसमें भगवान् भक्त को अपना जैसा ऐश्वर्य प्रदान कर देते हैं। सुदामा शब्द का अर्थ होता है-सु अर्थात् श्रेष्ठ,दाम माने धन।
भौतिक धन इतना श्रेष्ठ नहीं है। भौतिक धन कमाने में भी बड़ा दुःख उठाना पड़ता है और जब तक वह किसी व्यक्ति के पास होता है तब तक उसकी रक्षा में भी कष्ट मिलता है और अचानक चला जाता है तो भी पीड़ा दे करके जाता है। आये दुःखं, गये दुःखं,दुःखं च परिरक्षणे। भजन और सत्कर्म की पूंजी ही सदैव मंगलकारी है। सुदामा जी आध्यात्मिक संपदा से संपन्न थे। सुदामा शब्द का दूसरा अर्थ है- सु अर्थात् श्रेष्ठ, दाम अर्थात् बंधन। सुदामा शब्द का अर्थ हुआ जिसके जीवन में श्रेष्ठ बंधन है। सुदामा भगवत प्रेम में निबद्ध हैं। माया का बंधन श्रेष्ठ नहीं माना जाता है। माया का बंधन संस्सृति के चक्कर में डालने वाला है, ईश्वर में अनुराग उत्कृष्ट बंधन माना जाता है और वह व्यक्ति का लोक परलोक सुधारने वाला है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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