भागवत कथा से भगवद् धाम की होती है प्राप्ति: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य एवं श्रेष्ठ व्यवस्था में, समस्त भक्तों के स्नेह और सहयोग से, सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय सर्वे भवन्तु सुखिनः श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ कथा की भव्य शोभायात्रा एवं विशाल पूजा-अर्चना के साथ भागवत कथा का शुभारंभ। कथा स्थल- वृंदा होटल, बिजासन माता मंदिर के पास, केकड़ी (अजमेर) श्रीमद् भागवत कथा वक्ता-राष्ट्रीय संत श्री-श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने श्रीमद् भागवत महापुराण के माहात्म्य की कथा का गान किया। सूत शौनकादि संबाद, श्री भक्ति महारानी एवं नारद जी का संवाद, श्रीनारदजी एवं सनकादिकों का संवाद, आत्मदेव ब्राह्मण की कथा, भागवत कथा से प्रेत योनि में गये धुंधकारी का उद्धार एवं भगवद् धाम की प्राप्ति। श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के प्रभाव से उत्तम नगर के समस्त भक्तों को भगवद् धाम की प्राप्ति। श्रीमद् भागवत सप्ताह श्रवण की विधि एवं मंगलाचरण की कथा का गान किया गया। प्रथम दिवस की कथा के अमृत बिंदु-ईश्वर का अनुग्रह पाने के लिये हमारी पात्रता होनी चाहिये। ईश्वर का अनुग्रह पुरुषार्थ रूपी पात्र में ही टिक सकता है। ईश्वर अनुग्रह करना चाहते हैं, मगर हमारे पास अगर पुरुषार्थ का पात्र नहीं होता, तो ईश्वर का अनुग्रह किसमें भरा जा सकता है? इसलिए गीता के अंत में कहा है, यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम। पश्चिमी सभ्यता एवं भौतिकवाद की आग लग चुकी है ऐसा समझ में आते ही उसको बुझाने के प्रयत्न में जुट जाना चाहिये और आग को बुझाना हमारे बस की बात नहीं है तो उससे बचने की कोशिश करनी चाहिये। भगवान हमारे साथ हैं, वे हमारे लिये नहीं है। युद्ध हमारा है, उसको हमें लड़ना है। संघर्ष हमारा है तो इस संघर्ष से मुंह फेर कर भागना नहीं है और अगर भागना भी चाहेंगे तो उसमें समस्या का समाधान नहीं है। उससे तो हमारी समस्या बढ़ेगी। स्वस्थ शब्द के साथ स्वास्थ्य शब्द जुड़ा हुआ है। हम जितने स्वस्थ होते हैं उतना हमारा स्वास्थ्य अच्छा होता है। मगर स्वस्थ रहने के लिये क्या किया जाये? उसका एक सीधा-सादा नियम है। तन जितना चलेगा उतना स्वस्थ रहेगा और मन जितना स्थिर रहेगा उतना हम स्वस्थ रह सकेंगे। विषयानंदी व्यक्ति को ब्रह्मानंद का आनंद समझ में नहीं आता। वृद्धावस्था में देह की सेवा होती है; देव की सेवा नहीं। वृद्धावस्था में प्राण बहुत अकुलाते हैं, वृद्धावस्था में वृद्ध सत्तरह बार बीमार पड़ता है। अंत में अठारहवीं बार काल आता है, अतः मरता है। वेदान्त का अधिकार सबको नहीं है। वेदान्त का अधिकार विरक्त को ही है। विकारयुक्त दृश्य देखकर अजामिल का मन बिगड़ा था, सिनेमा देखने से क्या होता होगा? बैर एवं वासना से नया प्रारब्ध बनता है एवं उससे फिर जन्म लेना पड़ता है। वैर-वासना को साथ लेकर जो मरता है, उसकी सद्गति नहीं होती। निश्चय करो कि किसी के साथ वैर नहीं रखोगे। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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