राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री करमैती जी इस घोर कलिकाल में उत्पन्न होकर भी सर्वथा निष्कलंक रही। इन्होंने अपने साथ शरीर के पति के प्रति नश्वर प्रेम छोड़कर, आत्मा के पति भगवान श्री कृष्णचंद्र के श्री चरणों में सच्चा प्रेम किया। अपने तर्कों के द्वारा सोच-विचारकर संसार के सभी बंधनों को तोड़ डाला। निर्मल कुल काँथड्या और उनके पिता श्री परशुराम जी धन्य हैं। जिन्होंने श्री करमैती सरीखी भक्ता पुत्री को जन्म दिया। सर्वविदित है कि श्री करमैती जी ने घर को छोड़कर श्री वृंदावन धाम में निवास किया। संत जन इनके त्याग, बैराग और भक्ति की बड़ाई करते हैं। इन्होंने सांसारिक विषयों के भोगों से प्राप्त होने वाले सभी सुखों को वमन की तरह त्याग दिया, अर्थात् फिर भूल कर भी उनकी ओर नहीं देखा। उन सुखों को प्राप्त करने की इच्छा नहीं की।
सत्संग के अमृतबिंदु-सब जगह भगवान के किसी नाम को लिखा हुआ समझ कर बारंबार उस नाम के ध्यान में मन लगाना चाहिए अथवा भगवान के किसी स्वरूप विशेष की अंतरिक्ष में मन से कल्पना कर उसकी पूजा करना चाहिए। पहले भगवान की मूर्ति के एक-एक अवयव का अलग-अलग ध्यान कर फिर दृढ़ता के साथ सारी मूर्ति का ध्यान करना चाहिए। उसी में मन को अच्छी तरह स्थिर कर देना चाहिए। मूर्ति के ध्यान में इतना तन्मय हो जाना चाहिए कि संसार का भान ही न रहे फिर कल्पना- प्रस्तुत सामग्रियों से भगवान की मानसिक पूजा करना चाहिए। प्रेम पूर्वक की हुई नियमित भगवद् उपासना से मन को निश्चल करने में बड़ी सहायता मिल सकती है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में श्री कुल शेखर जी, श्री लीलानुकरण जी, श्री रन्तिवन्ती जी की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश)। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।