नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कर्मचारियों के हित में अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर सेवा की शर्तें वैधानिक आवश्यकता के अनुरूप नहीं हों तो कर्मचारी को इन्हें चुनौती देने का पूरा हक है। कोर्ट ने कहा कि नियोक्ता प्रमुख भूमिका में होता है, लेकिन कर्मचारी से उसका यह हक नहीं छीना जा सकता। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के अगस्त 2013 के एक फैसले को दरकिनार करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने एक विश्वविद्यालय में फार्मा साइंस विभाग के शिक्षकों की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें अगस्त 2011 के विज्ञापन के आधार पर चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए थे और उसकी नियुक्ति की शर्तों को चुनौती दी थी। पीठ ने कहा कि बेशक नियोक्ता को अपनी शर्तें लगाने का पूरा अधिकार है, लेकिन साथ ही इन शर्तों की खामियों को चुनौती देने के लिए कर्मचारी भी स्वतंत्र है। अगर कर्मचारी द्वारा शर्तों को चुनौती देने से उसकी नौकरी जाती है तो कोर्ट ऐसे मामले में न्यायिक नोटिस भी जारी कर सकता है।