पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि बाललीला श्रीविश्वामित्र ऋषि का आगमन, अहिल्या उद्धार। श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के नामकरण संस्कार का अवसर आ गया, श्री दशरथ जी महाराज ने गुरुदेव वशिष्ठ का आवाहन किया, उनका विधिवत पूजन किया और नामकरण के लिए प्रार्थना किया। करि पूजा भूपति अस भाषा। धरिअ नाम जो मुनि गुनि राखा। गुरुदेव आनंदविभोर हो गये। आज वे अपने पौरोहित्य कर्म से पूर्ण संतुष्ट हैं। उस समय का दृश्य अत्यंत मनोरम है। एक ऊंचा सा आसन है, उस पर श्रीवशिष्ठजी विराजमान हैं, उनके सामने नीचे चार आसन हैं। उस पर क्रम से श्री दशरथ, कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा जी विराजमान हैं। चारों की स्नेहमयी गोद में चार ललन हैं। गुरुदेव के द्वारा नामकरण संस्कार किया गया। हे राजन! जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस आनंद सिंधु के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं उनका नाम राम है। वे सुख के भवन और समस्त लोकों को विश्राम देने वाले हैं।
नामी के तीन विशेषण है, आनंदसिन्धु, सुखरासी और सुखधाम। श्री राम नाम में तीन मात्रायें हैं, तीनों सुख स्वरूप हैं। रकार आनंदसिंधु है, आकार सुखरासी है और मकार सुखधाम है। किंवा- ज्ञानी, कर्मी, और उपासक तीनों के विचार से तीन विशेषण दिये गये हैं। जो अपने श्रीराम प्रेम के द्वारा संसार को भर देंगे- पूर्ण कर देंगे और परिपुष्ट कर देंगे उनका नाम भरत है। गुरुदेव कहते हैं हे दशरथ जी! आपके छोटे बालक का नाम शत्रुघ्न है। इसके स्मरण मात्र से ईर्ष्या, द्वेष और कामादि नित्यशत्रु नष्ट हो जायेंगे। तीसरे बालक का नाम लक्ष्मण है। ये अपने जीवन सारसर्वस्व श्रीरामचंद्र की सर्वविधि सेवा करेंगे, अतः संसार में ये लक्ष्मण नाम से अभिहित किये जायेंगे। जय श्रीसीताराम।