सूक्ष्म रूप से सबमें विद्यमान हैं भगवान: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, परमात्मा के मधुर मंगलमय चरित्रों को, उनके जन्मों को, उनके कर्मों को सुनना और उनके पवित्र चरित्र गाना, अनासक्त होकर संसार में विचरण करते रहना- यह वैष्णव धर्म है। जो परमात्मा का भक्त बन जाता है, प्रभु के कीर्तन में कभी वह रोने लगता है, कभी गाने लगता है और कभी नाचने लगता है, उसके हृदय में ऐसा भाव बनता है कि फिर वह अपने को रोक नहीं पाता। जैसे गर्मी के दिनों में भी यदि मलेरिया हो जाये तो ठंड से कांपते मरीज को रजाई ओढ़नी पड़ती है, इसी तरह जब आपके जीवन में भक्ति का संचार होगा, तब यदि आप अपने स्वभाव को सुरक्षित रखना चाहें तब भी नहीं रख पायेंगे। भक्ति का प्रवेश बलात् आपको कभी नचा देगा, कभी रुला देगा और कभी-कभी आपके हृदय को पिघला देगा। परमात्मा के चरित्रों में आपकी प्रीति होगी। पृथ्वी-आकाश, वायु-अग्नि, जल, सूर्य-चाँद, दिशाएं, समुद्र, नदी-पर्वत, वृक्ष, पशु-पक्षी, ये जितने हैं सब-के-सब विराट भगवान् के अंग-प्रत्यंग हैं और सूक्ष्म रूप से सबमें भगवान् विद्यमान हैं।’ हरे शरीरम् ‘ । जहां विराट भगवान् का ध्यान बताया गया है वहां ऐसी भावना है, जगत-जगत नहीं है। यह सब परमात्मा के अंग प्रत्यंग है। जैसे मंदिर में हम मूर्ति रखते हैं, तब यह मानते हैं कि यह परमात्मा का शरीर है। परमात्मा इस मूर्ति के अंदर विराजमान है। मूर्ति में हमें भगवान् दिखते तो नहीं लेकिन हमारी एक भावना है कि हम उनमें भगवान् मानते हैं। कभी कोई तर्क नहीं करता कि यदि भगवान् मूर्ति में दिखते ही नहीं तो हम क्यों मानें। वह निश्चित हो चुका है कि मूर्ति के अंदर भगवान् हैं। अब वह दर्शन दे या न दें लेकिन हम हर रोज प्रणाम करते हैं और हमें मान लेना चाहिए और फिर भगवत बुद्धि से सबको प्रणाम करते रहो। भक्ति जब आपके जीवन में आ जायेगी, तब ईश्वर का अनुभव होने लगेगा और संसार से आपकी विरक्ति हो जायेगी। जैसे भोजन करो तो तुष्टि, पुष्टि और भूख की निवृत्ति एक साथ हो जाती है। भोजन किया नहीं इसीलिये शरीर कमजोर हो रहा है, भोजन करने की ज्यादा इच्छा हो रही है और तृष्णा है। लेकिन जैसे-जैसे आप भोजन करते जाते हैं, भूख समाप्त होती जाती है, ज्यादा खाने की इच्छा खत्म हो जाती है और शरीर में शक्ति आ जाती है। तीनों काम एक साथ होते हैं। इसी तरह जो व्यक्ति भक्ति करता रहता है, ईश्वर का अनुभव, संसार से विरक्त और आत्म-संतुष्टि ये भक्ति के लक्षण हैं। उसे भक्ति, विरक्ति और आत्म प्रबोध एक साथ होते हैं। ईश्वर का भजन करते-करते ऐसा समय आयेगा कि आपको जब ईश्वर की भक्ति मिलेगी तो आत्म-संतुष्टि, संसार से विरक्ति का अनुभव ये तीनों एक साथ प्राप्त होंगे। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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