नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण से बचाने में कोविशील्ड और कोवाक्सिन दोनों ही वैक्सीन असरदार हैं, लेकिन शरीर में विकसित होने वाली एंटीबॉडी कोविशील्ड में ज्यादा दिख हैं। यह जानकारी दिल्ली सरकार के छठे सीरो सर्वे में सामने आई है। इसमें पहली बार वैक्सीन की एक और दूसरी खुराक लेने वालों को भी शामिल किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन न लेने वाले 6605 वयस्कों में से 82 फीसदी में एंटीबॉडी विकसित हुई हैं। वैक्सीन की पहली खुराक लेने वालों में से 95.10 फीसदी और दूसरी खुराक के बाद 94.80 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गईं। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना महामारी के अन्य संक्रामक रोगों से अलग होने के पीछे यह मुख्य वजह है। आमतौर पर कोई भी व्यक्ति कोरोना संक्रमण की चपेट में आता है तो यह जरूरी नहीं कि हर किसी के शरीर में एंटीबॉडी बन जाएं। हालांकि सीरो सर्वे में सामने आए तथ्यों के मुताबिक कोविशील्ड लेने वालों में से 95.60 फीसदी में सीरो पॉजिटिविटी यानी कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी मिलीं, जबकि कोवाक्सिन ले चुके 93 फीसदी लोग ही सीरो पॉजिटिव पाए गए। जिन लोगों को पहले कभी कोरोना संक्रमण हुआ और ठीक होने के बाद उन्होंने वैक्सीन ली तो उनमें एंटीबॉडी को लेकर कोई खास बदलाव नहीं दिखा। रिकवरी के बाद वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद उतनी ही एंटीबॉडी मिलीं, जितनी कि संक्रमण की चपेट में अब तक नहीं आने वालों में मिली हैं। रिपोर्ट के अनुसार जो लोग कोरोना से ठीक हुए हैं, उनमें 1603 ने कोविशील्ड की पहली और 2095 ने दूसरी खुराक ली थी, लेकिन एंटीबॉडी क्रमश: 96.1 और 95.8 फीसदी ही मिलीं। इसी तरह कोवाक्सिन की पहली खुराक लेने वाले 259 में 91.90 फीसदी और दूसरी खुराक लेने वाले 554 में 93.10 फीसदी में एंटीबॉडी पाई गईं।