पुष्कर/राजस्थान। भगवान गणेश के अनंत नामों एक नाम विघ्नेश है। ये विघ्न करने वाले गणों के स्वामी है, ये विघ्नकर्ता भी हैं और विघ्नहर्ता भी है। यदि आपने गणपति का पूजन नहीं किया तो विघ्नकर्ता हैं और पूजन कर लिया तो विघ्नहर्ता भी है। जैसे-अशोधित संखिया जहर है और शोधित संखिया दवा भी है। श्री गणेश जी तो गणेश जी हैं। बाललीला में कार्तिकेय भगवान तो हाथ से पकड़ते हैं, श्री गणेश जी हाथ और सूंड दोनों से पकड़ते हैं और दोनों भाई विविध प्रकार का खेल करते हैं। कभी-कभी कार्तिकेय गुस्से में आगे बढ़ते तो गणेश जी सूंड में पानी रखते, डालकरके भगते, देवता पुष्प बरसाते और बाजे बजाते। अगर आप गणपति का पूजन करते हैं तो गणपति के संपूर्ण विग्रह से शिक्षा लेना चाहिए।
श्रवण (कान)- श्री गजानन गणेश जी महाराज के श्रवण हाथी के श्रवण जैसे हैं। हाथी का कान अर्थात् श्रवण सूप जैसा दिखाई पड़ता है जो अपना कल्याण चाहने वाले लोग हैं उन्हें भी अपना श्रवण सूप जैसा ही रखना चाहिए। साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाय।। अच्छी बात ही ग्रहण करना चाहिए। गुरुजन कहते हैं कि- भगवान ने दो कान दिये, एक कान से श्रवण करो, अगर बात अच्छी है तो भीतर उतार लो, नहीं तो दूसरे कान से उसे बाहर निकाल दो। दिन भर में हजारों बात सुनते हैं कितना हम भीतर रखेंगे। इसलिए हमेशा श्रेष्ठ शब्दों का ही चिंतन करके, उसी का संग्रह करना चाहिए। व्यर्थ का चिंतन करके व्यर्थ की बातों का संग्रह नहीं करना चाहिए। श्रेष्ठ चिंतन से व्यक्ति महान बनता है और गलत चिंतन से ही वह अपने जीवन को समाप्त कर लेता है। मनुष्य के जीवन में चिंतन का बड़ा महत्व है।
नेत्र- श्री गजानन गणेश जी के नेत्र हाथी के नेत्र जैसे हैं। हाथी का नेत्र शरीर की अपेक्षा बहुत छोटा होता है। उसके नेत्र में परमात्मा ने ऐसा लैंसफिट किया है। सामने आने वाले व्यक्ति उसे पहाड़ जैसा दिखाई पड़ता हैं। नहीं तो हाथी भला किसी को अपनी पीठ पर सवार होने दे? श्री गणेश जी के नेत्र शरीर की अपेक्षा छोटे हैं। तुलसी इस संसार में सबसे मिलिये धाय। ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाय।।
नाक- अच्छा काम करने से नाक बढ़ा दी और गलत काम करने से नाक कटा दी। नाक का अर्थ स्वर्ग भी है। शुभ कार्य करोगे तो स्वर्ग में ज्यादा समय तक वास मिलेगा अशुभ कार्य करने से स्वर्ग का रास्ता ही कट गया। पुल ही टूट गया। अशुभ कार्य करने वाला स्वर्ग कभी नहीं जा सकता। जो शुभ कार्य करेगा उसकी नाक अर्थात प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
इसी प्रकार भगवान श्री गजानन के विग्रह के प्रत्येक अंग से हम- आपको शिक्षा मिलती है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि-कल की कथा में शतरुद्र संहिता की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)