नई दिल्ली। यह उन दिनों की बात है, जब गीतकार गुलजार और निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी दोनों के बीच खूब बैठकी हुआ करती। एक दिन दोनों बंबई (अब मुंबई) से कार लेकर निकले और जा पहुंचे एक शोख, चंचल, युवती जया भादुड़ी से मिलने। जया बच्चन पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में एक्टिंग की पढ़ाई कर रही थीं। जया को फिल्म इंस्टीट्यूट के मुखिया का बुलावा पहुंचा। वह दफ्तर में आईं तो वहां ऋषिकेश मुखर्जी और गुलजार को पाया। यह दोनों वहां पहुंचे थे महान निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म महानगर देखकर। अपनी अगली फिल्म के लिए इन्हें ऐसी ही किसी मासूम लड़की की तलाश थी जो बोले रे पपीहरा..’ गाए तो परदे पर एक कामुक युवती लगे और ‘हमको मन की शक्ति देना…’ गाए तो बिल्कुल स्कूल की बच्ची भी लगे। इसी रोल के लिए डिंपल कपाड़िया का फोटो भी ऋषिकेष मुखर्जी तक पहुंचा था लेकिन ऋषिकेश को जो गुड्डी चाहिए थी, वह उन्हें जया भादुड़ी में मिली। ‘गुड्डी’ हिंदी सिनेमा में जया की पहली फिल्म है। और, इस लिहाज से शुक्रवार को जया भादुड़ी ने हिंदी सिनेमा में बतौर हीरोइन 50 साल पूरे कर लिए। जया बच्चन और अमिताभ के एक साथ काम करने का जो संयोग ‘बंसी बिरजू’ और ‘एक नज़र’ जैसी फिल्मों में साल 1972 में बना, वह संयोग दरअसल इस फिल्म ‘गुड्डी’ में ही तब बन गया था जब ऋषिकेश मुखर्जी ने इस फिल्म का हीरो अमिताभ बच्चन को चुन लिया था। अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म की शूटिंग भी बतौर हीरो कुछ दिन की। लेकिन, ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘आनंद’ में भी अमिताभ थे और उस फिल्म की शूटिंग करते करते ऋषिकेश मुखर्जी को समझ आने लगा था कि इलाहाबाद का ये छोरा एक दिन बड़ा कमाल करेगा। सो, उन्होंने अमिताभ बच्चन को ‘आनंद’ पर ही फोकस करने को कहा और फिल्म ‘गुड्डी’ में हीरो ले लिया समित भांजा को। हालांकि, अमिताभ बच्चन का फिल्म ‘परवाना’ की शूटिंग करते समय का एक सीन ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म ‘गुड्डी’ में रखा है। अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी का विवाह 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘जंजीर’ के तुरंत बाद हुआ लेकिन ‘जंजीर’ से पहले दोनों का प्रेम शुरू करने वाली फिल्म न तो ‘गुड्डी’ थी और न ही ‘एक नजर’ या ‘बंसी बिरजू’। एक साहित्यकार के बेटे और एक पत्रकार की बेटी का प्रेम शुरू हुआ धर्मवीर भारती की साहित्यिक कृति ‘गुनाहों का देवता’ पर बननी शुरू हुई फिल्म ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ के सेट पर। फिल्म की काफी कुछ शूटिंग इलाहाबाद में भी हुई। लेकिन किन्हीं कारणों से ये फिल्म तब बन नहीं सकी। अभी चार साल पहले अमिताभ बच्चन ने जब मुंबई में बांद्रा की साहित्य सहवास सोसाइटी के पास बने चौक का अनावरण किया तो उन्होंने इस फिल्म को फिर से याद किया। इस चौक का नामकरण धर्मवीर भारती के नाम पर ही किया गया है। ‘एक था चंदर, एक थी सुधा’ फिल्म की याद करते हुए अमिताभ बच्चन ने तब कहा था, ‘तब लोगों को जया के बारे में ज्यादा पता था, वह मुझसे बड़ी स्टार बन चुकी थीं, उतनी बड़ी तो नहीं लेकिन हां कुछ लोग उन्हें जानने लगे थे और मुझे तो कोई भी नहीं जानता था। फिल्म की सात-आठ रील भी शूट हो गई थीं, लेकिन दुर्भाग्य से फिल्म बन न सकी। ये फिल्म न बन पाने का हम दोनों अब भी अफसोस करते रहते हैं। लेकिन ‘गुड्डी’ सिर्फ और सिर्फ जया भादुड़ी की फिल्म है। फिल्म में धर्मेंद्र भी सुपरस्टार धर्मेंद्र की तरह ही हैं, लेकिन मजाल कि फिल्म का फोकस रत्ती भर भी गुड्डी से हटा हो। हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने इस फिल्म में जया भादुड़ी को देखा तो बस देखते ही रह गए। यूं लगा जैसे कि सावन बरसने के बाद हवा का कोई झोंका चला है, जिसने आम के बागान में बादलों की बची बूंदें कोपलों पर रोप दी हैं। काले घने भीगे हुए गेसुओं से जया बच्चन ने एक ऐसी घरेलू लड़की का खाका युवाओं के दिमाग में खींचा कि वे ऐसी ही कोई लड़की अपने आसपास में तलाशने लगे। उस जमाने की लंबी ऊंची अभिनेत्रियों की चमकती दमकती छवियों के बीच जया भादुड़ी ने अपनी सादगी और अपनी सहजता से लाखों दिल जीत लिए। जया भादुड़ी ने फिल्म ‘गुड्डी’ जब की तब वह 23 साल की थीं, लेकिन परदे पर उन्हें देखकर इस बात पर कतई अविश्वास नहीं होता कि वह स्कूल जाने वाली लड़की नहीं हैं। पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में जया ने जो गोल्ड मेडल जीता, ‘गुड्डी’ उसकी चलती फिरती ट्रॉफी है। गुड्डी ने तब उन सब भारतीय किशोरियों के अरमानों को परदे पर जिया जिनके सपनों का राजकुमार गांव, गली, मोहल्ले का कोई युवा न होकर रुपहले परदे के सितारे होने लगे थे। करीने से बनाई गईं दो चोटियां, चोटियों में गुंथे फीते, प्लेटवाली यूनीफॉर्म और आंखों में कसक फिल्म स्टार धर्मेंद्र की। गुड्डी की हर अदा, हर कोशिश उस जमाने की किशोरियों को अपनी सी लगी। ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म के भीतर एक ऐसा फिल्मी संसार रच दिया था कि उसका एक कोना ‘मधुमती’ के गाने ‘आ जा रे…परदेसी’ से मिलता है तो दूसरा गुलजार के लिखे भजन ‘हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें..’ से। कहानी भी मन को जीतने की ही है। कैसे एक किशोरी फिल्म स्टार धर्मेंद्र के लिए दीवानी है। उसे फिल्मी दुनिया सपनों की सतरंगी दुनिया सी लगती है, लेकिन फिर उसका हकीकत से उसका सामना भी होता है। गुड्डी जया भादुड़ी के लिए एक ऐसे काबिल निर्देशक का साथ पाने का सबब बनी, जिसके सिनेमा का जिक्र आज भी खूब होता है। ऋषिकेश मुखर्जी और गुलजार दोनों ने बिमल रॉय की शागिर्दी में सिनेमा सीखा। दोनों ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों में सहजता और सरलता को संजोए रखा। न किसी तरह का आडंबर और न ही किसी तरह की अनावश्यक चकाचौंध इन दोनों ने अपने सिनेमा में आने दी। जया भादुड़ी का तो रिश्ता ऐसा बना कि बाद में वह ऋषिकेश मुखर्जी की बावर्ची, चुपके चुपके, अभिमान और ‘मिली’ जैसी फिल्मों में भी खूब चमकीं और हिंदी सिनेमा की दमदार अदाकारा के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई। फिल्म ‘गुड्डी’ में अपने शानदार अभिनय के लिए जया भादुड़ी ने फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नामांकन जीता। स्पेशल अपीयरेंसेस का कोई पुरस्कार हिंदी सिनेमा में होता तो वह इस फिल्म को जरूर मिलता। उस समय के 15 नामचीन सितारों ने फिल्म गुड्डी में स्पेशल अपीयरेंस दिए हैं।